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[ ६ ] गुणी जन जिणको ऐसे ॥६॥ अणहिल पाटक नामके नगरमें दुर्लभ संज्ञक राजाके समक्ष श्रीजिनेश्वरसूरिने शिपिलाचारी साधुओंसे वादप्रतिवाद किया और जैसे सिंह हाथिओंसे सामना कर उन्हें चीरकर फेक देता है वैसेही श्रीजिनेश्वरसूरिने शास्त्रार्थ में उन शिथिला चारियों को पराजित किया ॥ १०॥ जैसे सूर्य रात्रिके अन्धकारको सत्वर नष्ट करता है वैसे ही रागादि दोष रहित सूरिजिनेश्वराचार्यने दशम असंयमीरूप पूजा लक्षण आश्चर्यरूप रात्रिमें स्फुरायमाण स्वच्छन्द शिथिलाचारियोंके मतरूप अन्धकारको शीघ्र नष्ट किया ॥ ११॥
११ और इन्हीं महाराजने भीगणधर साई शतकमें ऊपर की बातको खुलासा पूर्वक कही है जिसका पाठ नीचे मुजब है __ अथ-वसति वासोद्धारकरा भारधारण धोरेयान् ॥ श्रीजिनेश्वरसूरि युगप्रवरान् शरणी कुर्वन् गाथा प्रयोदशकमाह ॥
तेसि पय पउम सिवा रसित भमरुव्व सव्व भमरहिऊ ॥ ससमय पर समय पयत्य सत्थ वित्थारण समस्यो ६४॥ अणहिल वारयनाड इव्व दंसिय सुपत्तसंदोहे ॥ पसरपए वर्क विदूसगेय सन्नायगा णुगए ॥६५॥ सठिय दुलहराए सरसह अंको वसोहिय ॥ सहए मज्जेरायसहं पविसिऊण लोयागमाणु मयं ॥ ६६ ॥ नामाय रएहिं समं करियं वियारं॥ वियार रहिएहि वसहि निवासी साहुण ठावित ठावि भी अप्पा ॥६॥ परिहरिय गुरुकमागय वरवत्ताएय गुजरत्ताए वसहि निवासीजेहिं.फुडी कठ गुजरत्ताए ॥६॥ इत्यादि
ऊपरके पाठकी लघु कृत्तिका पाठ नीचे मुजब है :व्याख्या॥वक्षमाण त्रयोदश गाथांतं स्थितंतेसि जिणेसरसूरीणां धरणसरणं पवजामीति संबंधः॥ यः कीदृशः तेषां श्रीवर्द्धमानाचार्याणांपाद पद्म सेवा रसिक चरणारविन्दपर्युपासिगाढासक्तकिंवदित्याहाभ्रमरवत् मधुकरराव सर्वेषु शास्त्रेषु भ्रमेण संशयगरहितः Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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