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प्रधान श्रीदादाजी नाम से प्रख्यात श्रीजिनदत्तसूरिजी महाराजने विक्रम सम्बत् १९८० के अनुमान श्री " गुरुवार तंत्रय" नामास्तोत्र बनाया है उसमें श्रीदुलंभराजाकी राज्यसभा में श्रीजिनेश्वरसूरिजी महाराजने चैत्यवाशियोंके साथ में विवाद ( शास्त्रार्थ ) करके उन्होंको हटाये ऐसा खुलासा पूर्वक कथन किया है सो छपा हुआ श्री " गुरुपारतंत्र्य" के पृष्ट १० से १४ का मूल व्याख्या भावार्थ सहित पाठ नीचे मुजब है ।
अथ वसति मार्ग प्रकाशक श्रीजिनेश्वरसूरि स्तुतिं गाथा त्रयेणाह ॥ "सुहसील चोर चप्परण पञ्चलो निञ्चलो जिण मयंमि ॥ जुग पवर बुद्ध सिद्धन्त जाणउ पणय सुगुण जणो ॥ ९ ॥ पुरठ दुल्लहमहि वल्लहस्स अणहिलवाडए पयडं ॥ मुक्काविआरिणं सीहेण व दव्वलिंगिगया ॥ १० ॥ दसमच्छेरय निसिविष्फुरंत सच्छन्दसूरि मयतिमिरं ॥ सूरेणव सूरिजिणेसरेण हयमहिय दोसेण ॥ ११ ॥ "
व्याख्या ॥ सुखशीलचौर निराकरण समर्थः, जिनमते निश्चलः, युगप्रवर शुद्ध सिद्धान्त ज्ञातः प्रणत सुगुण जनः (चटपरण पञ्चल शब्दौ क्रमेण निरास समर्थ वाचकौ ) ॥ ९ ॥ ( येन ) अणहिल्लपाटके दुर्लभमही बल्लभ रय पुरतः विर्चाय सिंहेन गजा इव प्रगटं लिंगिनः मुक्ताः ॥ १० ॥ अहित दोषेण सूरिजिनेश्वरेण दशमाश्चर्य निशि विस्फुरत्स्वच्छन्दसूरि मत तिमिरं सूरेणेव हतम् ॥ ११ ॥
भावार्थ - विषय सुखमें लंपट केवल साधु वेषकोहि धारण करने वाले, भक्त जनोंके जैन सम्यक्त्व बोधि रत्नोंको असदुपदेश द्वारा चुराने वाले, ऐसे लिङ्गी साधुओं को जिनराज सिद्धान्तोक्त युक्ति पूर्वक बलात्कारसे मत खण्डन में समर्थ और जिन मत में निश्चल और युगप्रवर सुधर्मस्वामी के निर्दोष अङ्गोपाङ्गरूप सिद्धान्तके निरन्तर अभ्यास से प्रसिद्ध और प्रणाम करते हैं सद्
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