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[५ ] यस्थत तथा अभिजिन्नक्षत्रं षष्टे निर्वाण लक्षणे वस्तुनियस्य यद्वा अभिजिति नसत्रे षष्टं निर्वाण लक्षणं वस्तुयस्य स तथा उनमेवार्थ भावयति तद्यथा उत्तराषाढाभियंते चंद्रणेतिशेषः सूत्र बहु वचनं प्राकृत शैल्या एवमपि च्युतः सर्वार्थ सिद्ध नाम्नो महाविमानानिर्गतः च्युत्वा गर्भव्यत्क्रांत मरुदेवायाः कुक्षाववतीर्णवानित्यर्थः १ जातो गर्भा वासान्निःक्रांतः २ राज्याभिषेकं प्राप्त३ मुंडो भूत्वा आगारं मुक्त्वा अनगारिता साधुतां प्राप्तः इत्यर्थः पंचमी चात्रक्यब्लोपजन्या ४ अनंतरं यावत् केवलज्ञानं समुत्पन्नं यावत् पद संग्रहः पूर्ववत् अभिजितयुते चद्रे परिनिर्वृतः सिद्धिगतः ६॥'
भावार्थः ऋषदेवस्वामीके च्यवन १ जन्म, २ राज्याभिषेक, ३ दीक्षा, ४ ज्ञान, ५ लक्षण पंच वस्तु विषे उत्तराषाढा नक्षत्र हुआ; और अभिजित् नक्षत्र विषे छठा निर्वाणवस्तु हुवा, यही छी वस्तु न्यारेन्यारे दिखाते है, प्रथम सर्वार्थ सिद्धनामा महावीमानसें च्यवकरके मरुदेवीमाताके गर्भमें आये १ फिर जन्म हुवा, २ फिर राज्याभिषेक हुवा, ३ फिर गृहवास छोडके साघु हुए, ४ फिर केवल ज्ञान हुवा, ५ और अभिजित् नक्षत्र विष चंद्र आयेहूए भगवान् सिद्ध हुए ६ यह प्रोजंबुद्वीप प्राप्तिका मूलपाठ और टीकाका पाठदिखायाहै, हे मुजजनों? विचारिये ! कि-जैसे श्रीमहावीरस्वामीजीके पाठ बिषे छ वस्तु कथन करी है तैसे ही श्रीऋषभदेवस्वामीके पाठ विषेभी छ वस्तु कथन करी है तोमी तुमने श्रीमहाबीरस्वामीजीके तो छोकल्याणक ठहरा लिये और ऋषभदेवस्वामीजीके न ठहराये, इस हेतुसे हमजानते हैं कि- यह ऋषभदेवजी महाराज विषयक पाठ न जामनेसे श्री महाबीरखामीजीके पाठमें तुमकों छी कस्याणककी भांति र फिर नाति होनेसे आग्रहकरलिया।]
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