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[६ ] तो पाठोंको देख लेनेकी भलामण करते इनको लज्जाआई और श्रीगणधर सार्द्धशतककी लघु टीकाके पाठको देख लेनेकी भलामण करके अपनी साहूकारी प्रगट करना चाहा परन्तु इससे तो अपनी विद्वत्ताको विशेष हांसी करानेका कारण हुआ क्योंकि अजमेर में उसी पुस्तकको देखनेके लिये इतनी दूर कौन जावे उसीका प्राचीन पुस्तक मेरे पास यहां ही मौजूद है उसीने छठा कल्याणक प्रगट करने सम्बन्धी अक्षर देखके आपलोगोंको भ्रम पड़ गया परन्तु सद्गुरुसे उसीका मतलब समझे बिना सन्देह करना उचित नहीं है क्योंकि देखो "प्रभावक चरित्र" में भी प्रोवृद्धवादिजीके शिष्य श्रीसिद्धसेन दिवाकर सूरिजीके चरित्रमें तथा श्रीअभयदेवसूरिजी महाराजके चरित्र में श्रीऐवंतीपार्श्वनाथजीकी प्रतिमाको तथा प्रोस्थम्भनपाखंनाथजीकी प्रतिमाको प्रगट करने सम्बन्धी खुलासा अक्षर लिखे हैं सो तो छपाहुआ श्रीप्रभावक चरित्र प्रसिद्ध है तथा उपरकी बात अनेक शास्त्रों में प्रगट भी है और आत्मारामजीने भी सिद्धसेन दिवाकरजी महाराजके चरित्रमें श्रीऐवं. तीपाखं नाथजीकी प्रतिमाको प्रकट करनेका खुलासापूर्वक लिखा है।
प्रश्नः-अजी श्रीऐवंतीपाखनाथजीको प्रतिमाको तो अन्य मतियोंने लुप्त करी थी तथा श्रीस्थम्भनपार्ख नाथजीकी प्रतिमा भी कालयोग्यसे लुप्तभावको प्राप्त होगई थी इसलिये श्रीसिद्धसेन दिवाकर सूरिजीको तथा श्रीअभयदेवसूरिजीको प्रगट करनेका अवसर मिला तब उन महाराजोंने प्रगट करी परन्तु श्रीमहावीर स्वामीका छठा कल्याणक पूर्व कहां था तथा कब लुप्तभावको प्राप्त हुआ सो श्रीजिनवल्लभ मूरिजीको प्रगट करने का अवसर प्राप्त हुआ सो बताओ।
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