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अणुव्रत -दृष्टि
३ - किसी व्यक्ति, दल, पक्ष या धर्म विशेषके प्रति आक्षेपात्मक नीतिसे भ्रान्ति न फैलाना या झूठा आरोप न लगाना ।
आजका मनुष्य ज्यों-ज्यों वर्ग संघर्ष मिटाना चाहता है त्यों-त्यों प्रकारान्तर से वह अधिक बढ़ता जाता है। जितने राजनैतिक दल हैं वे एक दूसरे को गिरानेमें वैध-अवैध सभी सम्भव उपायोंको खोजते रहते हैं । आक्षेप, झूठा प्रचार, आरोप ये तो नित्यप्रतिके कार्य हो चुके हैं । व्यक्ति के समानाधिकार का जनतंत्रीय उच्चादर्श व्यक्ति-व्यक्तिमें द्वन्द्व पैदा करनेका प्रतीक हो रहा है। चुनावोंकी दुर्व्यवस्था का तो कोई वर्णन ही नहीं किया जा सकता। वहाँ आकर तो वह लोकशाही, गांधीजीके शब्दोंमें हुल्लड़शाही और बर्नाडशाके शब्दों में पागलपनका रूप ले लेती है । इन सबका मूल कारण दल संघर्ष ही है ।
विभिन्न धर्म औरसम्प्रदायोंमें भी वही छींटाकशी देखी जाती है; दो व्यक्तियोंमें मनमुटाव होते ही परस्पर आक्षेपों और आरोपोंकी बौछार होने लगती है । अणुव्रती आदर्शवादी होगा, वह किसी एक राजनीतिक वर्ग में विश्वास रखनेवाला व प्रमुख होकर भी दूसरे दलोंके प्रति न भ्रान्ति फैलाने का प्रयत्न करेगा और न झूठे प्रोपेगण्डाको ही प्रोत्साहन देगा । वह किसी एक धर्मका हृदयसे अनुयायी होते हुए भी, दूसरे धर्मो के साथ असहिष्णुता और असहय्य भाव नहीं रखेगा, इसी प्रकार व्यक्तिगत झगड़ोंमें भी वह असत्य प्रचार को प्रश्रय नहीं देगा । अणुव्रतीका यह आदर्श सारे समाजके लिये अनुकरणीय होगा, यदि समाजने भी तदनुकूल प्रवृत्ति की तो बहुत-सी समस्यायों का हल होकर एक नयी चेतना, नये संगठनका आविर्भाव होगा ।
४ – न्यायाधीश व पंच आदिके समक्ष अनर्थकारी असत्य साक्षी न देना ।
आवश्यक तो यह है कि जीवनके किसी भी व्यवहारमें अणुव्रती असत्यको प्रश्रय न दे, न्यायाधीश व पंच आदिके समक्ष तो अणुव्रतीकी प्रामाणिकता होनी अनिवार्य ही है । इस थोड़े समयमें ही परिचित
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