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[ प ] ..यही कारण है कि भारतीय संस्कृति हमेशा ही अहिंसा प्रधान रही है ! उन्होंने बताया-"हिंसा मत करो, असत्य मत बोलो, चोरी मत करो, भोग विलास मत करो, संग्रह मत करो। इससे तुम्हें निःश्रेयस् मिलेगा।" अब गौर करें कि मोक्ष प्राप्तिके लिए समाज यदि हिंसा-शोषण आदिको त्याग कर चलता है, प्रत्यक्षकी समाज व्यवस्था अपने आप ही हो जाती है। रोटी और कपड़ेका प्रश्न फिर खड़ा नहीं रह जाता। अस्तु-अणुव्रत-संघका मौलिक उद्देश्य व्यक्तिको निःश्रेयस् की ओर अग्रसर करना है। ..' जब कि सरदारशहरमें सन् १६४९ मार्च महीनेमें अणुव्रती-संघ का उद्घाटन समारोह चल रहा था, सहस्रोंकी परिषद् में नियमावली पढ़कर सुनाई जा रही थी, हरिजन पत्रमें गुलजारीलाल नन्दा द्वारा सर्वोदय सम्मेलनपर की गई कुछ प्रतिज्ञाओं का उल्लेख आया। पत्रमें प्रतिज्ञाओंके प्रसारका ही आग्रह था। प्रतिज्ञाएँ अणुव्रती संघके नियमोंसे मिलती-जुलती सी थीं। कुछ एक जो नई थीं आचार्यवरने उन्हें अणुव्रत नियमावलीमें ज्योंका त्यों स्थान दे दिया ।* यह आचार्यवरका दो नैतिक आन्दोलनोंको एक कड़ीमें जोड़ देनेका उदार दृष्टिकोण था। इसी प्रकार सर्वोदय आन्दोलनके संचालक आचार्य विनोबा भावे और आचार्य तुलसीका विगत मिंगसर मासमें देहलीमें जब मिलन हुआ, आचार्य विनोवा भावेने अणुव्रत कार्यक्रमका हृदयसे स्वागत किया और कहा इस सम्बन्धके मेरे विचार तो आप 'हरिजन' में पढ़ ही चुके होंगे। 'हरिजन' में उल्लिखित विचार केवल मश्रुवालाके ही नहीं अपितु हम दोनोंके थे।” अस्तु ___ मैं आशा करता हूँ देशके अन्यान्य उदारचेता विचारक भी नतिक उत्थानके इस पुनीत कार्यमें सहयोगका विनिमय करते रहेंगे।
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मुनि नगराज
- सम्वत् २००९ ) ... वैशाख कृष्ण तृतिया
सुजानगढ़। * अचौर्य अणुव्रत नियम ६, ९ .. . ब्रह्मचर्य अणुव्रत नियम ६ .
अपरिग्रह अणुव्रत नियम १२
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