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अणुव्रत - दृष्टि
घृणा रहती है। अधिकांश निरामिषभोजी प्राणियोंका बध करना दूर रहा मांस तक को देखने में कांप उठते हैं। मनुष्यके मारनेकी बात तो अकसर वह सोच ही नहीं सकते । मांसाहारियोंकी स्थिति ऐसी नहीं है, वे पशु-हत्यासे घृणा न करते हए मनुष्य - हत्या के भी अधिक समीप पहुंच जाते हैं। आवश्यकतावश वह किसी भी हिंसामें सहजतया प्रवृत्त हो सकते हैं। यदि संसारमें मांसाहार उठ जाये तोहोनेवाली बर्बर हिंसायें अवश्य कम होंगी और अहिंसाका मार्ग बहुत कुछ निरापद होगा । अवश्य अहिंसावादी इस ओर ध्यान देंगे । नियमके विषयमें
'अणुव्रतीसंघ' जब कि नैतिक उत्थानका एक अहिंसात्मक संगठन है। उसमें मांसाहार विरोधक नियम अन्यान्य नियमोंकी तरह आवश्यक माना गया है । विगत १२ महीनोंमें, खासकर दिल्ली अधिवेशन के पश्चात्, ज्यों-ज्यों 'अणुव्रती - संघ' के नियम सार्वजनिक क्षेत्रमें आये, विभिन्न विचारकों और आलोचकोंके हाथोंमें पहुंचे, बहुत सहानुभूति पूर्ण सुझाव आचार्यवरके समक्ष प्रस्तुत हुए, खासकर मांसाहार सम्बन्धी नियमके विषय में । प्रमुख गांधीवादी विचारक श्री किशोरलाल मश्रुवालाने मंत्री आदर्शसाहित्य संघके साथ वैयक्तिक पत्र-व्यवहार करते हुए लिखा था :
" निरामिष भोजनके सम्बन्धमें मेरा व्यक्तिगत मत तो यही है कि कभी-न-कभी मानव जातिको इस पर आना होगा । लेकिन यह एक लम्बा मार्ग है, और जिस हेतुसे आप इस संघका आयोजन करना चाहते हैं उसमें इसका स्थान व्यवहार्य नहीं है । यदि इस विषय में कदम उठाना हो तो बौधोंके 'उपोसथ' व्रतके तौर पर सोचा जा सकता है, यानि मासमें अमुक दिन ।”
डा० सातकौड़ी मुखर्जी, प्रधान संस्कृत अध्यापक कलकत्ता युनिवरसीदी, प्रोफेसर अमरेश्वर ठाकुर व डा० कालीदास नाग आदि बंगाली
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