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अणुव्रत-दृष्टि ___ इस स्पष्टीकरणका यह तात्पर्य नहीं है कि अणुव्रती अपनी कर्तव्यनिष्ठाको ही भुला दे। जो बादा अणुव्रती कर चुका है उसे साधारणसी विवशतामें ही यदि नहीं निभाता है वह अन्य लोगोंकी दृष्टिमें अकर्तव्यनिष्ठ बनता है, उसकी प्रतिष्ठा पर धब्बा आता है अतः जहाँ तक बन सके उसे ऐसा वादा नहीं करना चाहिए जिसे निभा देनेमें उसे सन्देह है। क्योंकि नीति-शास्त्र उत्तम पुरुष उन्हें ही मानता है जो हर प्रकारका बलिदान करके भी अपने बचनको निभाते हैं।
छोटे-छोटे बालकोंको कभी-कभी भुलावा दे दिया जाता है, जैसे तुम्हें अमुक वस्तु लादूंगा या तुम्हें अमुक वस्तु दिखला दूंगा--यह विश्वासघात नहीं माना गया है, किन्तु ऐसा भुलावा देनेकी प्रवृत्ति पुनः २ नहीं रखनी चाहिए । इससे अपने सत्यका आदर्श खण्डित होता है और बच्चा भी झूठ बोलने का आदि होता है। 8-कानूनी या व्यावहारिक दृष्टिसे पशुओंपर ज्यादा भार न लादना।
स्पष्टीकरण बहुधा थोड़ेसे स्वार्थके लिये मनुष्य पशुओंके विषयमें बेरहम हो जाते हैं और मानो उन्हें बेजान प्राणी मानकर उनपर अमर्यादित भार डाल देते हैं। यह सब मनुष्यकी निर्दयताका सूचक है। इस दिशामें यह नियम आवश्यक और उपयोगी है । अणुव्रतियोंका व्यवहार इस विषयमें अवश्य पथ-प्रदर्शक होगा। ___ जहाँ जितने मनका कानून है वहाँ उसके मनोंसे दो-चार सेर वजन यदि प्रसङ्गवश अधिक हो जाता है जो वस्तुतः कानूनकी दृष्टिमें भी नगण्य है, तो त्यागमें कोई बाधा नहीं समझी जायगी।
तांगे आदिमें जहाँ तीन या चार व्यक्तियोंके सवार होनेका नियम है, अणुव्रती यथाक्रम चौथा और पांचवां होकर नहीं बैठ सकता, न वह
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