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अहिंसा-अणुव्रत मर्मान्तक आघात होता है और वह एक बड़ी हिंसा है। विश्वासघात शब्द आज इतना परिचित हो गया है कि बात २ में एक दूसरे पर विश्वासघात करनेका आरोप लगा ही दिया जाता है। वस्तुस्थिति भी ऐसी है कि तनिक स्वार्थके लिये भी आजका मानव किसीको धोखा देते हुए नहीं हिचकिचाता । 'कहना कुछ' और 'करना कुछ' यह तो आजकलकी व्यवहार्य नीति बन चुकी है। धोखवाज तो आजके युगका चतुर है । अणुव्रतीका व्यवहार हर विषयमें सरल और सुस्पष्ट होना चाहिए। उसे इस अन्ध-परम्पराके पीछे नहीं चलना है प्रत्युत पारस्परिक व्यवहारमें एक आदर्श उपस्थित करना है।। __ प्रश्न यह रहता है कि विश्वासघात कहते किसे हैं ? उसकी स्पष्ट परिभाषा क्या है ? बहुधा किसी आदमीके साथ कोई वादा किया जाता है, विवशतासे वह समय पर नहीं निभाया जाता, क्या यही विश्वासघात है ? त्थागके रूपमें विश्वासघातसे कैसे बचा जाये इसके लिये श्री आचार्यवरने इस विषयमें एक स्पष्ट मर्यादा स्थापित कर दी है । उसे समझ लेनेके पश्चात् नियम-पालनमें कोई संदिग्धता नहीं रहती। वह परिभाषा यह है "धोखा देनेकी भावनासे ही किसी के साथ कोई वादा करना और उसे समय पर नहीं निभाना ही इस नियमकी परिधि में आनेवाला विश्वासघात है।"
सामनेवाला व्यक्ति यह निर्णय बहुधा नहीं कर सकता कि यह विवशतासे ही वादेको नहीं निभा रहा है या मुझे धोखा देनेके लिये ही इसने वादा किया था । उसकी दृष्टिमें दोनों ही विश्वासघात है । अणुव्रती के लिये इस विषयमें निर्णायक उसकी आत्मा ही है। यदि वस्तुतः उसने वादा धोखा देनेके लिये ही किया था तो यदि प्रतिपक्षी उसे धोखा न भी समझ तो वास्तवमें वह धोखा है और उसमें अणुव्रतीका नियम भङ्ग है। असलियतमें यदि उसकी नीति विश्वासघातकी नहीं थी तो प्रतिपक्षी कुछ भी समझ अणुव्रतीका नियम भङ्ग नहीं होगा। अतः मेरी प्रवृत्तिमें विश्वासघात है या नहीं इसका उत्तर वह अपनी आत्मासे ही ले।
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