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विधान बाधा की सम्भावना तो तब की जा सकती है जब वह अपने वैयक्तिक स्वरूप को उस संघ या संस्था पर लादना चाहता है। किसी भी सावजनिक संस्था का अध्यक्ष यदि किसी भी प्रणाली से बनाया जाता है तो यह कहीं का भी नियम नहीं है कि वह किसी धर्म या दर्शन का माननेवाला हो ही न । वह अपने आप में स्वतन्त्र है चाहे वह किसी भी विचार या आचार विशेष में चलनेवाला हो। गृहस्थ या सन्न्यस्त हो, संस्था को इससे क्या ? यदि उसके उद्देश्यों में उसके उस स्वरूप से कोई बाधा न पड़ती हो। ___ जब कि यह सर्वमान्य प्रथा है तब ऐसी स्थिति में किसी धर्माचार्य की अध्यक्षता में असार्वजनिकता का ही स्वरूप देखना कोई विचारकता नहीं मानी जा सकती।
तेरापन्थ और 'अणुव्रती-संघ' का यह मेल यदि निकटतम संसर्गसे जाना जाय तो सम्भवतः किसी भी विचारक के लिये आनन्द का ही विषय होगा। इस मेलके कारण ही 'अणुव्रती-संघ' को एक अनूठा बल मिल जाता है।
तेरापन्थ एक युग-धर्म है, वह धार्मिक जगत् में आई बुराइयों से परे है, क्योंकि वह उन बुराइयों के विरुद्ध हुई एक क्रान्ति का ही परिणाम है। आज से लगभग २०० वर्ष पूर्व इसका उद्गम हुआ। यह मठ, मन्दिर, अस्थल, स्थानक आदि किसी भी रूपमें साधु-संघके लिये या धर्म के नाम पर किये जानेवाले अर्थ-संग्रह का विरोधी है। फलस्वरूप तेरापन्थी साधु-संघका एक भी मकान नहीं है न और किसी भी प्रकार का अर्थसंग्रह है। तेरापन्थ मानव जाति के किसी भी वर्ग के अस्पृश्य होने में विश्वास नहीं रखता। वह सामाजिक कार्योको धर्मका अङ्ग मानकर अपरिवर्तन की शृङ्खला से नहीं जकड़ता। तेरापन्थी साधु-संघ पूर्ण सुसङ्गठित है। वह आदि काल से अपने क्रियाशील व दरदर्शी आचार्यों के नेतृत्व में एक गतिविधि से कार्य कर रहा है । इसके वर्तमान अधिनेता आचार्य श्री तुलसी हैं जिनके क्रिया-कलापों से आज जन-जन
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