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अणुव्रत-दृष्टि विशेष कल्याण हो सकेगा। सभी लखपति या करोड़पति नहीं हैं ; हजारों कमानेवालोंका भी समाजमें कुछ कम स्थान नहीं है। इसलिये सरसोंके तैलमें सियालकाराका तैल मिलाने, धीमें चर्बी मिला और कम तौलनेकी समस्या इतनी विकट है कि कलकत्ताके बाजारमें एक सेर मच्छलीकी कीमत अदा करने पर भी घरमें पूरी एक सेर ले जानेका प्रसंग कदाचित ही कभी आता होगा। ऐसी कितनी ही समस्याओंने हमारे जीवनको बिगाड़ कर संकटमय बना दिया है ।
"महात्माजी प्रेम, सहृदयता, अहिंसा, सत्य, धर्म आदिके उपदेशसे चोरबाजारी और मिलावटको दूर करनेमें सफल नहीं हो सके। आचार्य तुलसी महोदय मानवजातिकी बुराइयोंको दूर करनेके आन्दोलनमें सफल होकर यदि व्यवसायियोंको सत्य निष्ठ बना सकें, कांग्रेसी तथा गैर कांग्रेसी जन-साधारणमें और सरकारी कर्मचारियोंमें फैले हुये मिथ्याचार और दुर्नीतिको दूर करसकें तो महात्माजीके स्वप्नका रामराज्य पूर्णरूपमें प्रगट हो जायेगा। दिल्लीमें लखपति करोड़पतियोंने आत्महत्या न करनेकी भी प्रतिज्ञा ली है। आत्महत्या महापाप तो है, परन्तु वे तो प्रतिज्ञा न लेने पर भी आत्महत्या नहीं करते,-ऐसा हमें विश्वास है।" न्यूयार्क ( अमरीका ) के पत्र 'टाईम' १५ मई १९५० सम्पादकीय :
"अन्य अनेक स्थानोंके कुछ व्यक्तियोंकी तरह एक पतला दुर्बल ठिगना भारतीय चमकती हुई आंखों वाला संसारकी वर्तमान स्थितिके प्रति अत्यन्त चिन्तित है । ३४ वर्षकी आयुका वह आचार्य तुलसी है, जो तेरापंथी समाजका आचार्य है। यह समाज एक धार्मिक समुदाय है, जो अहिंसा में विश्वास रखता है। तुलसीरामजीने १९४६ में अणु. व्रती संघ कायम किया था। इसके सदस्य १४८ प्रतिज्ञायें लेते हैं, जो प्रति वर्ष दोहराई जाती हैं।
“गत सप्ताह संघने यह घोषणाकी है कि उसके सदस्योंकी संख्या ७५ से २५ हजार हो गई है। उनमें अनेक लखपति करोड़पति भी हैं।
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