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अणु-दृष्टि
दायित्व है उसको अन्तमें ६०० लखपति - करोड़पतियोंने प्रगटमें स्वीकार किया । ६०० लखपति - करोड़पतियोंका नाम भी प्रगट हो गया होता, तो ठोक होता । चोरबाजार नहीं करेंगे, झूठे राशनकार्ड नहीं बनावेंगे, जुआ नहीं खेलेंगे, किसीकी जमीन या मकान, सोना-चान्दी, भोजन-सामग्री, घी-तैल-आटा-मैदा तथा दूधकी बिक्री में कम अधिक नहीं करेंगे और कोई मिथ्या व्यवहार नहीं करेंगे । इन्होंने कभी चोरबाजार किया था कि नहीं, कभी मिलावटकी थी कि नहीं, कभी मिथ्या व्यवहार किया था कि नहीं, यह हमें मालूम नहीं । इन प्रतिज्ञाओं में ऐसा कुछ लिखा नहीं गया है। बड़े-बड़े ही क्यों, साधारण व्यापारियों में भी ये बुराइयाँ फैली हुई हैं। चोरबाजार और मिलावट देशव्यापी बुराइयाँ बन गई हैं। छोटे व्यापारी यह कहेंगे कि पहले हमें भी लखपति करोड़पति बन लेने दो, तब हम भी मानवजातिके सुधार के लिये प्रायश्चित कर लेंगे ।
"चोरबाजार करेंगे नहीं, मिलावट करेंगे नहीं, यह सब संकल्प बहुत अच्छे हैं; पर उनको व्यवहार में लाना होगा और हृदयका परिवर्तन भी करना होगा । उसके लिये पहले पापकी स्वीकृति आवश्यक है । उसको कहते हैं प्रायश्चित । मनुष्य कितना भी पापी और चोरबाजार करनेवाला क्यों न हो, जीवनके अंतिम भाग में, विशेषकर विवेकके अगनेपर और प्रायश्चित होनेपर उसके चरित्रकी शुद्धि हो जाती है । सरदार पटेलने दिल्ली समझौते के सम्बन्धमें संदिग्ध लोगोंको मनुष्यके भीतर विद्यमान मनुष्यतापर विश्वास करनेके लिये कलकत्ताके व्याख्यान में उपदेश दिया था, 'आदमीने पहले कुछ भी क्यों न किया हो, वह मृत्युशय्या पर भी प्रायश्चित कर सकता है; इसपर हमें विश्वास रखना चाहिये ।'
“अभी सेठ रामकृष्ण डालमियांने भी एक विज्ञप्ति प्रकाशित की है । उसका सारांश यह है कि १६२० से १६३० तक प्रायः बीस वर्षतक युवा अवस्था में मैं प्रसिद्ध सटोरिया रहा हूँ । परिस्थितिवश अनेक बार
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