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आलोचनाके पथपर अणुव्रती-संघ ११६ तुलसी, जो कि इस संगठन या आन्दोलनके दिमाग हैं, राजपुतानाके रेतीले मैदानोंको पैदल पार करके दिल्लीकी पक्की सडकोंपर आये हैं, केवल इस उद्दश्यसे कि वे संघके ऊँचे आदर्शों व सिद्धान्तोंका प्रचार करना चाहते हैं।" 'हिन्दुस्तान स्टैंडर्ड' कलकत्ता, २ मई १९५० सम्पादकीय :
"लगभग ६०० लखपतियों और करोड़पतियोंने, जो अधिकतर मारवाड़ी हैं, कहा जाता है कि यह प्रतिज्ञा कर ली है कि चोरबाजारी-खाद्य पदार्थों में मिलावट और मिथ्या आचार आदिका अनैतिक व्यवहार अपने कारबारमें नहीं करेंगे। इस देश में व्यापार व्यवसायमें मिथ्या आचार जोरोंपर है और यह भय है कि कहीं उससे समाजके जीवनका सारा ही नैतिक ढांचा नष्ट न हो जाये । इसलिये कुछ व्यापारियोंका यह आन्दोलन कि वे व्यापार-व्यवसायमें मिथ्या आचार न करेंगे, देशमें स्वस्थ व्यापार व्यवसायको जन्म दे सकेगा। इस दिशामें अणुव्रती संघके आचार्य तुलसीने जो पहलकी है ; उसके लिये वे बधाईके अधिकारी हैं।"
'आनन्दबाजार पत्रिका' कलकत्ताका 'नूतन सत्ययुग' नामका लेख इस प्रकार है :
"तो क्या कलियुगका अवसान हो गया है ? सत्ययुग क्या प्रगट होनेको है। नई दिल्लीका ३० अप्रैलका एक समाचार है कि मारवाड़ी समाजके कितने ही लखपति और करोड़पति लोगोंने यह प्रतिज्ञा की है कि वे कभी चोरबाजार नहीं करेंगे। दो चार ही नहीं ; बल्कि ६०० लखपति करोड़पतियोंने यह वचन दिया है कि वे किसी भी प्रकारका चोरबाजार नहीं करेंगे। इसका एक इतिहास है, प्रयोजन है और इसके प्रेरक हैं आचार्य श्री तुलसी, जिन्होंने मानव जातिकी समस्त बुराइयोंको दूर करनेके लिये एक आन्दोलन प्रारम्भ किया है। उसीके समर्थनमें यह प्रतिज्ञा की गई है। .
"मानव जातिके अकल्याणमें दुर्नीति और चोरबाजारीका जो
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