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अणुव्रत -दृष्टि
इसी तरह किसी प्रकार और भी अनेक निवेदन आये। इधर अती बनने के विषय में भी मानसिक धरातल को इतना ऊँचा उठाने के लिए बहुत ही कम व्यक्ति साहस कर रहे थे । उस पर भी नियमों 'को सरल कर देने की बात आचार्यवर को मान्य नहीं थी ।
अणुव्रत प्रचार के लिए आचार्यवर ने उपयुक्त ग्यारह नियमों का एक नया ही मार्ग ढूंढ निकाला - यह ग्यारह सूत्री कार्यक्रम पूर्ण अणुव्रती की मंजिल तक पहुंचने के लिए सोपान रूप है। अणुव्रत दिशा में बढ़ने के विषय में यह प्रथम चरण - विन्यास भी कहा जा सकता है। उक्त अथ में 'अणुव्रत आंदोलन' नाम भी सार्थक एवं समुचित है ।
उक्त आन्दोलन का प्रारम्भ सम्वत् २००७ मिंगसर में सिसाय ( पंजाब ) से हुआ। आचार्यवरके शिष्य साधुजन राजस्थान, मध्य भारत, पंजाब, सौराष्ट्र, गुजरात आदि प्रान्तों में खूब तेजी से प्रचार कर रहे हैं । विगत एक वर्ष में सहस्रों व्यक्ति उक्त ग्यारह नियमों को आजीवन जीवन में उतारने के लिए शपथ ले चुके हैं ! इस आन्दोलन का संक्षिप्त विधान यह है
(१) आन्दोलनके सदस्योंको अणुवतियोंके साथ प्रति वर्ष एक अहिंसा दिवस मनाना होगा ।
(२) आन्दोलनकी गतिविधिपर विचार-विमर्श तथा उसके प्रचारके लिए प्रतिमास स्थानीय सदस्योंका एक सम्मेलन होगा ।
(३) प्रत्येक सदस्यको प्रतिवर्ष कमसे कम २५ व्यक्तियोंको आन्दोलन के सदस्य बनानेका प्रयत्न करना होगा ।
उक्त विधानका तात्पर्य है कि नैतिकता के प्रसारके लिए नैतिक पुरुषों का एक संगठन बने जिससे उनके जीवनमें नैतिक बल जागृत होता रहे और बुराइयोंके सामने न झुकना पड़े ।
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