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अपरिग्रह-अणुव्रत अभ्यस्त होनेका अवसर प्राप्त होगा और क्रमशः गहनेके मोहसे दूर होती रहेंगी। सम्भव है निकट भविष्यमें एतद्विषयक स्थायी नियम भी जनताके सम्मुख आ जायें ।
स्पष्टीकरण गहनेकी सुरक्षाके लिये उसे कभी पहन लेना पड़ता हो तो नियम बाधक न होगा।
८-वोट--मत व साक्षी देनेके लिये रुपये न मांगना और न लेना।
मालूम होता है आजके मनुष्यने अपनी सारी उपयोगिता पैसेके सौदे पर रख दी है। उसका कर्तव्य पैसा पैदा करनेके अतिरिक्त और कुछ नहीं है । एक नागरिक होनेके नाते या म्यूनिसिपल बोर्ड या असेम्बली आदिका सदस्य होनेके नाते उसे बहुतसे विषयोंमें मत देनेका अधिकार होता है । वह अधिकार भी इसलिये है कि वह अपनी बुद्धि, न्याय और
औचित्यका सुन्दर उपयोग करे, किन्तु वह अपने इन सारे मानवीय आदर्शोको अर्थार्जनका प्रतीक मान उनकी विडम्बना करता है । यही तो कारण है, चुनावोंके अवसरसे जनतन्त्र सही तात्पर्यसे पूंजीतन्त्र बन जाता है। आजका विचारक वर्ग इस अव्यवस्थासे कितना चिन्तित है, उनका हृदय ही इस बातकी अनुभूति करता होगा। छोटी सी मानी जानेवाली इसी एक भूलके परिणाम स्वरूप कितनी बड़ी राजनैतिक उथल-पुथल प्रायः सभी राष्ट्रोंमें आये दिन होती रहती है और भारतवर्ष में भी निकट भविष्यमें ही होनेवाले चुनावोंके विषयमें तद्रुप आसार स्पष्ट नजर आने ही लगे हैं। ऐसी स्थितिमें अणुव्रती-संघका यह नियम पानी आनेसे पहले बांध लगा देने जैसा होगा।
कुछ लोग तो असत्य गवाही देनेका पेशा ही बना लेते हैं, कुछ सत्य साक्षी मो किसी मूल्यपर देना चाहा करते हैं । अणुव्रती उक्त प्रवृत्तियोंसे वचता रहे।
६-जुआ न खेलना। जूवेकी बुराइयोंसे अधिकांश व्यक्ति परिचित हैं। इस प्रकारके
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