________________
१०१
अपरिग्रह-अणुव्रत तथापि व्यावहारिकताको ध्यानमें रखते हुए ये एक ही द्रव्य माने गये हैं अर्थात् उक्त प्रकारका दूध एक द्रव्य, उक्त प्रकारका पानी एक द्रव्य ।
(३) जिस नामके साथ ऐसा विशेषण लगता हो जो संस्कार-भेदका सूचक हो वह नाम अपने विशेषण सहित स्वतंत्र द्रव्य है जैसे-लुक्खी रोटी, चोपड़ी रोटी, सेका हुआ पापड़, तला हुआ पापड़, मिर्च लगाया पापड़, फीके चावल, मीठे चावल आदि ।
(४) जो दो द्रव्य मिलाकर स्वभावतः खाये जाते हैं किन्तु उनके मेलसे कोई नई संज्ञा नहीं बनती तो वे सब पृथक्-पृथक् द्रव्य हैं। जैसेघी-खीचड़ी, घी-चीनी-घाट, दूध-चीनी, दाल-चावल आदि। __ (५) दो या बहुत द्रव्य मिलकर यदि एक व्यावहारिक संज्ञाको धारण कर लेते हैं तो वह एक संज्ञा ( नाम ) एक द्रव्य है। जैसे-खीर, आमरस, मेवेकी खिचड़ी, चूरमा, पान, शाक आदि। __स्पष्टीकरण-द्रव्य घटानेकी दृष्टिसे यदि कोई अस्वाभाविक मेल मिलाया जाता है तो वे द्रव्य पृथक्-पृथक् माने जायेंगे जैसे-खिचड़ीमें सुपारी।
(६) सजातीय फलादि एक द्रव्य हैं । जैसे-कलमी आम, लंगड़ा आम, मीठा पान, मघई पान ।
(७) किन्हीं दो पदार्थोंका मूल तत्त्व एक है फिर भी यदि आकार या संस्कारादि भेदसे नाम भिन्न-भिन्न हैं तो वे सब स्वतन्त्र द्रव्य हैं जैसे-चीनी, मिश्री, वतासा ; मावेका पेढा, मावेका पेड़ा ; दिया, बुंदियाका लड्डू, ; पूड़ी, फलका, टिकड़ा, रोटी आदि।
६-रुपये लेने खोलकर कन्या, पुत्र आदिका वैवाहिक सम्बन्ध न करना।
पशुओंकी तरह कन्या व पुत्र आदिका भी मोल होने लगा है। लोभी माता-पिता अच्छी तरहसे सौदा करके कन्या, पुत्रादिका सम्बन्ध करते हैं। वहाँ सन्तानका स्वार्थ गौण कर दिया जाता है, चाहे कन्याके लिये वर या घर अनुपयुक्त है, चाहे पुत्रके लिये वधू
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com