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अपरिग्रह-अणुव्रत जो कपड़ा कन्ट्रोल रेटसे खरीदा गया हो, उसे रंगाकर या सिलवाकर बेचनेके विषयमें ब्लैक विषयक उक्त नियम प्रतिबन्धक नहीं है।
जो वस्तु व्यापारके लिये नहीं किन्तु किसी व्यापारिक साधन विशेषके रूपमें खरीदी गई है उसके खरीदनेके सम्बन्धमें उक्त नियम लागू नहीं है । उदाहरणार्थ-मिल, फैक्टरी आदिके पुर्जे व अन्य सामग्री। किन्तु इस अबाधकताके विषयमें यह ध्यान रखना आवश्यक है कि वह साधन मात्रसाधन ही हो, यदि वही साधन वस्तु-रूपमें परिणत होता हो तो यह नियम उसके ब्लैकसे खरीदने में बाधक होगा। जैसे-सूत, रूई आदि। सूता व रूई कपड़ा बनानेके लिये खरीदे जाते हैं तो भी कपड़ा उनसे कोई पृथक वस्तु नहीं है, सूत व रूई ही कपड़ेका रूप लेते हैं । इसी तरहसे आइस-कण्डीके उद्देश्यसे खरीदी जानेवाली चीनीके विषयमें समझ लेना चाहिए।
जो वस्तु घर खर्चके लिये खरीदी गयी हो, वह किसी कारणवश यदि बेचनी पड़ती है तो ब्लैकसे नहीं बेची जा सकती, चाहे वह ब्लैकमें ही खरीदी हुई क्यों न हो ?
जिस वस्तुके खरीदनेके समय कन्ट्रोल नहीं था, बादमें कन्ट्रोल हो गया, तबसे अणुव्रती कन्ट्रोल-रेटसे अधिक दाम नहीं ले सकता।
२-घूस न लेना।
सर्वसाधारणमें जिस प्रकार ब्लैक मार्केटका प्लेग फैला है उसी तरह राजकर्मचारियोंमें रिश्वतखोरीकी महामारी फैली हुई है। राजकर्मचारी जनताको ब्लैक मार्केटिंगके नामसे कोसते हैं और जनता उन्हें घूसखोरी के नामसे। अपनी-अपनी कमजोरीके कारण एक दूसरेके सामने सर झुका देते हैं, कोई भी एक दूसरेका इलाज नहीं कर सकता। इन्हीं दो बुराइयोंमें देशके नैतिक पतनका परम दर्शन होता है। अणुव्रती क्लर्क से लेकर प्रधान मंत्री पद तकके किसी पद पर होता हुआ, किसी प्रकारकी घूस नहीं ले सकता। क्या ही अच्छा हो यदि देशके मात्र कर्मचारी अणुव्रती हो जायें या देशके गणमान्य व्यक्तियोंका ध्यान
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