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________________ 454 सिरसबतिंप्रत्यर्थविशेषणां चमा प्रकृत्यर्थस्य परिपूर्णतेहप्रशंस्वा नवलप ४५४ पलांडुनाखरीप ताद सहयोय भय्यये धावती लोहितं पिवेता चौररूया यमय्पथ मरणरंजन पं हरेता वस्तु यह रशादिना चौर्यादिपरिपूर्यते आयेगीयीकर्मप्रवचनीया ननतम बादीनी रूप यश्च कार्य में देश यावता अतिशायनमयि जानिंदा विषयापस्तमःयापायानिनिरूप बभ यविषयः। ययरूपः चारुरूष रूप इतीतिचे उच्चता अतिशायनसमानप्रति योग्य यज्ञव स्पष्टांतनिर समिति स्पष्ट वार्थ मैदान्पर्थपूरी ववै स्पष्ट तवानिशायनानं दा साधा रातथाच वार्तिकप्रकृत्य र्थवै स्प थे। रूप बितिय चतिरूपमिति तिने सत्यभूत क्रियाप्राधा न्यातच च संख्या विशेषाप्रती नावोत्सर्गकवादेकवचन मे भवनित दपि प्रथमाया एवेति वदति । पपत्या धूपे सपान हिनी या या कवचनं भवन वालिंगविशेष प्रतीत्य भाव कबिनातिनयेच राम तोरूपं पचंतिरूपंपचामी रूपमित्यादिप्रयोगसिद्ध्यति एवं पचति कल्पय चनः कल्पमित्यादाव विज्ञेया ४५४ Dharmartha Trust J&K. Digitized by eGangotri
SR No.034463
Book TitleSiddhant Kaumudi Vyakhyan Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages507
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size390 MB
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