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होता है कि आप हेमचन्द्रकी आम्नायके थे । पर ये हेमचन्द्र कौन थे इसका कुछ पता नहीं चलती।
राजमल्लकी कृतियाँ
आजसे अनेक वर्ष पूर्व जब स्व० पं० गोपालदासजी बरैयाकी कृपासे जैन विद्वानोंमें पंचाध्यायी नामक ग्रन्थके पठन-पाठनका प्रचार हुआ, उस समय लोगोंकी यह मान्यता हो गई कि यह ग्रन्थ अमृतचन्द्रसूरिकी रचना है । परन्तु लाटीसंहिताके प्रकाशमें आनेपर यह धारणा सर्वथा निर्मूल सिद्ध हुई। और अब तो यह और भी निश्चयपूर्वर्क कहा जा सकता है कि पंचाध्यायी, लाटीसंहिता, जम्बूस्वामिचरित और अध्यात्मकमलमार्त्तण्ड ये चारों ही कृतियाँ एक ही विद्वान् पं० राजमल्लके हाथकी हैं।
पंचाध्यायी के मंगलाचरणमें ग्रन्थकार पंचाध्यायीको 'ग्रन्थराज ' के नामसे उल्लेख करते हैं और इसे स्वात्मवश लिखने में प्रेरित होते हैं। इस ग्रंथको पाँच अध्यायोंमें लिखनेकी प्रतिज्ञा की गई है । दुर्भाग्यसे
१ पं० जुगलकिशोरजीका कहना है कि " यहाँ जिन हेमचन्द्रका उल्लेख है, के ही काष्ठासंघी भट्टारक हेमचन्द्र जान पढ़ते हैं, जो माथुर गच्छ और पुष्कर गणान्वयी भट्टारक कुमारसेन के पट्टशिष्य तथा पद्मनन्दि भट्टारकके पहगुरु थे, और जिनकी कविने लाटी -संहिताके प्रथम सर्गमें बहुत प्रशंसा की है । ....... . इन्हीं भट्टारक हेमचन्द्रकी आम्नायमें 'ताल्हू' विद्वान्को भी सूचित किया है। इस विषय में कोई सन्देह नहीं रहता कि कवि राजमल एक काष्ठासंघी विद्वान् थे । आपने अपनेको हेमचन्द्रका शिष्य या प्रशिष्य न लिखकर आन्नायी लिखा है, और 'फामन के दान, मान, आसन आदिसे प्रसन्न होकर लाटी-संहिता के लिखनेको सूचित किया है। इससे यह स्पष्ट ध्वनि निकलती है कि आप मुनि नहीं थे, बहुत संभव है कि आप गृहस्थाचार्य हों या ब्रह्मचारी आदिके पदपर प्रतिष्ठित हो । लाटीसंहिताकी भूमिका ( माणिकचन्द ग्रन्थमाला ) पृ० २३.
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