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Ātmānusāsana
आत्मानुशासन
फिर पीछे वमन करके उसे निकाल देते हैं। दूसरा आश्चर्य उनके ऊपर होता है जो कि पूर्व में तो विशुद्ध संयमरूप निधि को ग्रहण करते हैं
और तत्पश्चात् उसे छोड़ भी देते हैं। अभिप्राय यह है कि पूर्व में तप-संयमादि को स्वीकार करके भी जो पीछे फिर से विषयों में अनुरक्त होकर उसे छोड़ देता है वह इस प्रकार का हीन मनुष्य है जो कि पूर्व में अमृत को पी करके फिर पीछे उसे वमन द्वारा बाहर निकाल देता है।
In this world, there are hundreds of surprises. However, among these, two are the most striking: first, those unfortunate men who first drink nectar but vomit it subsequently; second, those who first acquire the treasure of austerities (tapa) but leave it subsequently. The idea is that those who first acquire the treasure of austerities but leave it subsequently due to attraction for sense-pleasures are lowly men who first drink nectar but vomit it subsequently.
इह विनिहतबह्वारम्भबाह्योरुशत्रोरुपचितनिजशक्ते परः कोऽप्यपायः । अशनशयनयानस्थानदत्तावधानः कुरु तव परिरक्षामान्तरान् हन्तुकामः ॥१६९॥
अर्थ - हे भव्य! बहुत पापकर्म के आरम्भरूप बाहरी शत्रु को नष्ट करके अपनी आत्मीक शक्ति को बढ़ा लेने वाले तेरे लिये अन्य कोई भी दु:ख का कारण नहीं हो सकता है। तू राग-द्वेषादिरूप आन्तरिक शत्रुओं को नष्ट करने का अभिलाषी होकर भोजन, शयन, गमन एवं स्थिति आदि के विषय में सावधान होता हुआ अपने संयम की रक्षा कर।
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