SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 294
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ---245 पुण्य-पाप विषयक ज्ञातव्य तथ्य ----- जाता है, अत: पुण्य से पाप का क्षय होता है। इसके विपरीत पाप की वृद्धि से पुण्य प्रकृतियों का पाप प्रकृतियों में संक्रमण होता है, अत: पाप से पुण्य का क्षय होता है। यह नियम है कि पुण्य की वृद्धि होती है तो पाप क्षीण होता है और पाप की वृद्धि होती तो पुण्य में क्षीणता होती है। अत: पाप और पुण्य एक-दूसरे के विरोधी हैं, सहयोगी नहीं हैं। पुण्य से आत्म-गुणों का विकास होता है और पाप से आत्म-गुणों का ह्रास होता है। अत: पुण्य आत्मा का भूषण है और पाप आत्मा का दूषण है। पुण्य प्रकृतियाँ पूर्ण रूप से अघाती हैं। इनसे आत्मा के किसी भी गुण का लेशमात्र भी घात नहीं होता है। प्रत्युत पुण्य आत्म-गुणों के विकास में सहायक है। अत: पुण्य मंगलकारी, कल्याणकारी और पाप विनाशक है। सम्यक्त्वी के पुण्य प्रकृतियों के अनुभाग का हनन व क्षय नहीं होता है। केवल पाप प्रकृतियों के अनुभाग का ही हनन या क्षय होता है। वीतराग केवली के मुक्ति-प्राप्ति के पूर्व तक पुण्य प्रकृतियों के अनुभाग का लेशमात्र भी हनन नहीं होता है अर्थात् पुण्य का अनुभाग उत्कृष्ट ही रहता है। उसके मुक्ति-प्राप्ति के अंतिम समय तक उच्च गोत्र, आदेय, यशकीर्ति आदि पुण्य प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभाग का उदय ज्यों का त्यों रहता है।
SR No.034369
Book TitlePunya Paap Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2017
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy