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________________ 218 --- पुण्य-पाप तत्त्व यह नियम है कि कामना की आपूर्ति में अशांति, पराधीनता, चिंता, खिन्नता, दीनता, भय, दु:ख रहता ही है, यही दरिद्रता की निशानी है, पहचान है और कामना के अभाव में शांति, अभाव का अभाव, स्वाधीनता व प्रसन्नता रहती है, यही सच्ची सम्पन्नता है। जैसा कि आगम में कहा है कहं न कुज्जा सामण्णं, जो कामे न निवारए। पए-पए विसीयंतो, संकप्पस्स वसं गओ।। ____ -दशवैकालिक सूत्र, 2.1 अर्थात् संकल्प (कामना) के वशीभूत व्यक्ति पग-पग पर विषाद से, खेद-खिन्नता के दु:ख से दु:खी होता है। अत: जो कामनाओं का त्याग नहीं करता है, वह श्रमण धर्म का पालन कैसे कर सकता है? अर्थात् नहीं कर सकता है। आयावयाहि चय सोगमल्लं, कामे कमाहि कमियं खु दुक्खं। छिंदाहि दोसं विणएज्ज रागं, एवं सुही होहिसि संपराए।। -दशवैकालिक सूत्र 2.5 तात्पर्य यह है कि शोक-खेद-खिन्नता का त्याग कर आतापना लेने से, दु:खों को सहन करने से, कामनाओं में कमी करने से दु:ख में कमी होती है। द्वेष का छेदन करने से, राग को दूर करने से शीघ्र संसार में तत्काल सुखी हुआ जा सकता है। उत्तराध्ययन सूत्र के 9वें अध्ययन में कहा है सुवण्णरुप्पस्स उ पव्वया भवे, सिया हु केलाससमा असंखया। नरस्स लुद्धस्स न तेहिं किंचि, इच्छा हु आगाससमा अणंतिया।।48।। पुढवी साली जवा चेव, हिरण्णं पसुभिस्सह। पडिपुण्णं नालमेगस्स, इइ विज्जा तवं चरे।।49।। -उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन 9, गाथा 48-49
SR No.034369
Book TitlePunya Paap Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2017
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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