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________________ शुभ योग (सद्प्रवृत्ति) से कर्म क्षय होते हैं भाव की उत्पत्ति कषाय के उदय से या किसी भी अशुभ आगम-विरुद्ध है। 185 कर्मोदय से मानना शुभ भाव या क्षायोपशमिक भाव कर्म क्षय के कारण हैं, अतः धर्म रूप हैं। शुभ भाव किसी भी अंश में किसी भी आत्मिक गुण का लेशमात्र भी घात नहीं करते हैं। अत: आत्मा के लिए किंचित् भी घातक नहीं हैं और न किसी भी रूप में हेय ही हैं। तात्पर्य यह है कि ‘शुभ भाव' कषाय के उदय से नहीं, प्रत्युत कषाय की कमी व क्षय से होते हैं। कुछ लोगों की मान्यता है कि शुभ भाव में प्रशस्त राग होता है, जो बंध का कारण है। परंतु उनकी यह मान्यता आगमानुकूल नहीं है, कारण कि राग का उदय मोहनीय से होता है और मोहनीय कर्म व इसकी किसी भी प्रकृति को कर्म-ग्रन्थ व आगम में कहीं पर भी शुभ नहीं कहा है। अत: ‘राग’ शुभ या प्रशस्त भी होता है, यह मान्यता कर्म-सिद्धांत व जैनागम से मेल नहीं खाती है। वीतराग, देव, गुरु, धर्म व गुणीजनों के प्रति जो प्रमोद भाव होता है वह राग नहीं, अनुराग है, प्रेम है। गुरु व गुणीजनों के स्मरण व सान्निध्य से जो प्रसन्नता होती है वह भोग नहीं, सहज स्वभाव है। राग व भोग विकार हैं और प्रेम, प्रमोद व प्रसन्नता का भाव, स्वभाव है। प्रेम, प्रमोद भाव, प्रसन्नता व अनुराग को राग मानना भूल है। राग त्याज्य होता है, अनुराग नहीं। राग में आकर्षण और भोग होता है। अनुराग में प्रमोद व प्रसन्नता होती है, भोग नहीं। मैत्री, प्रमोद, करुणा और माध्यस्थ (तटस्थता) ये चारों ही भाव 'शुद्ध' व 'शुभ भाव' हैं, अत: स्वभाव हैं, विभाव या दोष नहीं। स्वभाव गुण होता है, दोष नहीं। अत: मैत्री, प्रमोद, करुणा आदि भाव गुण हैं, दोष नहीं। दोष नहीं होने से ये विकार या विभाव रूप नहीं है। विकार या दोष
SR No.034369
Book TitlePunya Paap Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2017
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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