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________________ ____75 वनस्पति में संवेदनशीलता साथ 90° का कोण कदापि न बनायेगा अर्थात् वहाँ भी धरती की सतह के साथ 90° का कोण बनाता हुआ सीधा ही खड़ा होगा। दूसरा उदाहरण लीजिये एक पौधे युक्त गमले को खड़े रखने के बजाय सपाट लिटा दीजिये। कुछ दिनों में आप देखेंगे कि पौधे का तना घुमाव लेता हुआ धरती में समकोण (90°) बनता हुआ सीधा ऊपर जा रहा है। जिस प्रकार मनुष्य को जल, ताप आदि की अत्यधिक व अत्यल्प मात्रा असह्य होती है, उसी प्रकार वनस्पति को भी असह्य होती है। पौधा किसी जल में गल जाता है तथा जल के अभाव में सूख जाता है। अधिक धूप में जल जाता है तथा अधिक शीत में ठिठुठ कर लूंठ बन जाता है। यही नहीं वनस्पति में आहार, भय, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, हर्ष, शोक, निद्रा आदि चेतनत्व के अभिव्यंजक सब गुण पाये जाते हैं। इनका विशेष वर्णन अगले प्रकरणों में किया जायेगा। (2) स्पंदनशीलता (Movement)-जीव अपनी अतिरिक्त शक्ति या प्रेरणा से स्पंदन, हलन-चलन व गति करते हैं। जीव की इन्हीं गतिविधियों को जीव-विज्ञान में गति कहा जाता है। यह गति दो प्रकार की होती है-एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाना व शरीर के अंग उपांगों में स्पंदन और संचरण होना। चर जीवों में दोनों प्रकार की गतियाँ पाई जाती है। साधारणत: वनस्पतियाँ अपने स्थान पर ही स्थिर रहती है। उनमें गति तने, पत्र, पुष्प आदि की वृद्धि के रूप में या संवेदन से होने वाली हलन-चलन के रूप में देखी जाती है। छुई-मुई के पौधे को छूते ही उसमें हलचल प्रारंभ हो जाती है। उसकी पतियाँ सट जाती है और टहनियाँ झुक जाती है। सूर्यमुखी फूल सदा सूर्य की ओर मुँह किए रहता है और सूर्य के घूमने के साथ-साथ अपना मुँह भी घुमाता रहता है। कमलिनी की कलियाँ सूर्यास्त के समय स्वत: बंद हो जाती हैं और सूर्योदय होने पर
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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