SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 292
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 275 पुद्गल की विशिष्ट पर्यायें ही आतप रूप पुद्गल की पर्याय कहा गया है। इसे ग्रहण किया जा सकता है, छोड़ा जा सकता है। साथ ही यह स्वयं गतिमान एवं भारवान भी है। ये सब विशेषताएँ आतप रूप पुद्गल की पर्याय की उद्योत पर्याय व उष्ण गुण से भिन्न अस्तित्व की द्योतक है। ताप के भार को समझने के लिए कुछ सरल उदाहरण दिये जा सकते हैं। यथा-3,000 टन पत्थर के कोयले को जलाने से जितना ताप उत्पन्न होगा उसका भार लगभग एक माशे के बराबर होगा। एक हजार टन पानी को वाष्प में परिणत करने के लिए जितने ताप की आवश्यकता होती है उसका भार एक ग्राम के तीसवें भाग से भी कम होता है। जिस प्रकार इलेक्ट्रॉन तथा प्रोटॉन एक दृष्टि से पदार्थ हैं और दूसरे दृष्टिकोण से वैद्युतिक तरंगों के अतिरिक्त कुछ नहीं हैं, उसी प्रकार प्रकाशविकिरण के संबंध में हम कह सकते हैं कि वह पदार्थ का तरंग रूप है और पदार्थ के संबंध में कह सकते हैं कि वह विकिरण का बर्फ की तरह जमा हुआ रूप है। ऊपर का तथ्य आतप या ताप पर भी घटित होता है कि तापविकिरण पदार्थ का तरंग रूप है और पदार्थ ताप-विकिरण का बर्फ की तरह जमा हुआ रूप है। जैनदर्शन में आतप के लिए सूर्य की धूप को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया गया है। विज्ञान जगत् में भी ताप के संबंध में खोज करते हुए सूर्य की धूप को ही आधार बनाया गया है। आज से ठीक पौने दो सौ वर्ष पूर्व प्रसिद्ध खगोल शास्त्री विलियम हर्शेल ने एक प्रयोग किया था। उसने सूर्य किरणों के एक पुंज को प्रिज्म द्वारा झुकाकर थर्मामीटर की
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy