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________________ 04 जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य पहुँचकर तुरंत तने की ओर आगे बढ़ता जाता है और शाखा, प्रशाखा और फूलों में होता हुआ फल तक पहुँचता है।" उपर्युक्त कथन का तुलनात्मक अध्ययन यह सिद्ध करता है कि वनस्पति के आहार की क्रिया व परिणमन विषयक विवेचन में वर्तमान वनस्पति विज्ञान व आगम निरूपित कथन में पूर्ण साम्य है। वनस्पति के खाद्य पदार्थों का वर्णन आगम में इस प्रकार है-“ते णं भंते! जीवा किमाहरमाहारेंति? गोयमा! दव्वओ णं अणंतपएसियाइं दव्वाइं एवं जहा पन्नवणाए पढमे आहारुद्देसए जाव सव्वप्पणयाए आहारमाहारेति। ते णं भंते! जीवा जमाहारेति तं चिजंति, जं नो आहारेंति तं नो चिजंति, चिन्ने वा से उद्दाइ पलिसप्पइ वा? हंता गोयमा! ते णं जीवा जमाहारेंति तं चिज्जति जं नो जाव-पलिसप्पइ वा।" -भगवती 19, उद्देशक 3, सूत्र 7-8 हे भगवन् ! (पृथ्वी, जल व वनस्पतिकायिक) जीव कैसा आहार करते हैं? हे गौतम! वे द्रव्य से अनंत प्रदेश वाले पुद्गलों का आहार करते हैं। विशेष वर्णन पन्नवणा के प्रथम आहार उद्देशक के अनुसार समझना यावत् सर्व आत्मप्रदेशों द्वारा आहार ग्रहण करते हैं। फिर गौतम स्वामी पूछते हैं-हे भगवन्! क्या वे जीव जो आहार ग्रहण करते हैं उसका चय' होता है, जिन पदार्थों का वे आहार नहीं करते हैं क्या उनका चय नहीं होता है? तथा जिन आहारों का चय होता है, क्या उनका असारभाग बाहर निकलता है और सार भाग शरीर-इन्द्रिय रूप परिणमता है? भगवान फरमाते हैं-हे गौतम! हाँ, वे जीव जिन पदार्थों का 1. प्रा. जीवविज्ञान।
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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