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[दशवैकालिक सूत्र हिन्दी पद्यानुवाद
पागल कत्ता नवब्याही गौ, मदमत्त सांड हाथी-घोडे ।
शिशु-क्रीड़ा भूमि कलह झगड़ा, रह दूर श्रमण इनको छोड़े।। अन्वयार्थ-मार्ग की यतना विशेष रूप से बतलाते हैं-साणं = काटने वाला कुत्ता । सूइयं गावि = नवप्रसूता गौ। दित्तं गोणं = मदोन्मत्त बैल । हयं गयं = घोड़ा और हाथी । संडिब्भं = बच्चों के खेलने का स्थान जहाँ हो । कलह = लड़ाई-झगड़ा । जुद्धं = शस्त्र से युद्ध जहाँ हो रहा हो, ऐसे स्थानों को । दूरओ = दूर से ही। परिवज्जए = वर्जन करे।
__ भावार्थ-भिक्षा के लिये गया हुआ साधु मार्ग में जहाँ कुत्ता हो, नवप्रसूता गौ और उन्मत्त बैल हो, घोड़ा तथा हाथी हो, बच्चों का क्रीड़ा स्थल हो, पाँच दस लोग जहाँ लड़ रहे हों, मार्ग में अस्त्र-शस्त्रों से युद्ध हो रहा हो, ऐसे स्थलों का दूर से वर्जन करे । (कुत्ते आदि के पास में जाने से शरीर को हानि, बच्चों में अप्रीति, लडाई में सम्मिलित समझे जाने आदि कारणों से संयमियों को ऐसे स्थानों से बचकर चलना ही हितकर है)।
अणुन्नए नावणए, अप्पहिढे अणाउले ।
इंदियाणि जहाभाग, दमइत्ता मुणी चरे ।।13।। हिन्दी पद्यानुवाद
अत्युच्च नहीं अथवा अवनत, न अति प्रसन्न गत व्याकुलता।
भिक्षादि हेतु विचरे मुनिजन, कर क्रमिक दमन इन्द्रिय-सत्ता ।। अन्वयार्थ-मार्ग में चलने की विधि बताते हैं-मुणी = भिक्षा आदि लेने हेतु चलते समय मुनि । अणुन्नए = अधिक ऊँचे होकर । नावणए = या अधिक नीचे होकर नहीं चले । अप्पहिढे = हँसता हुआ भी न चले । अणाउले = आकुल भाव रहित होकर चले । इंदियाणि = इन्द्रियों को । जहाभागं = अपनेअपने विषय में । दमइत्ता = वश में करके । चरे = गमन करे।
भावार्थ-साधु गर्दन ऊँची करके या अधिक झुक कर नहीं चले, जिससे घमण्ड या दीनता प्रकट हो । भिक्षा लेने हेतु हँसते हुए और व्याकुल मन से चलते हुए जाना भी जन-मन में भ्रान्ति पैदा करने वाला हो सकता है। अत: साधु इन्द्रियों को अपने-अपने विषयों में यथायोग्य वश में करके चले।
दवदवस्स ण गच्छेज्जा, भासमाणो य गोयरे।
हसंतो णाभिगच्छेज्जा, कुलं उच्चावयं सया।।14।। हिन्दी पद्यानुवाद
दौड़ता बोलता तेजी से, भिक्षा में मुनिजन चले नहीं। कुल उच्च नीच में सदा चले, हँसते भी जाये कभी नहीं।।