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[ अंतगडदसासूत्र
गजसुकुमाल कुमार है, जो मेरी सोमश्री भार्या की कुक्षि से उत्पन्न यौवनावस्था को प्राप्त मेरी निर्दोष पुत्री सोमा कन्या को अकारण ही छोड़कर मुंडित हो यावत् श्रमण बन गया है।
सूत्र 22
मूल
संस्कृत छाया
तं सेयं खलु मम गयसुकुमालस्स वेरणिज्जायणं करित्तए, एवं संपेहेइ, संपेहित्ता दिसापडिलेहणं करेइ, करित्ता सरसं मट्टियं गिण्हइ, गिण्हित्ता जेणेव गयसुकुमाले अणगारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गयसुकुमालस्स अणगारस्स मत्थए मट्टियाए पालिं बंधइ, बंधित्ता जलंतीओ चिययाओ फुल्लियकिंसुय-समाणे खयरंगारे कहल्लेणं गिह्णइ, गिण्हित्ता गयसुकुमालस्स अणगारस्स मत्थए पक्खिवइ, पक्खिवित्ता भीए तओ खिप्पामेव अवक्कमइ, अवक्कमित्ता जामेव दिसं पाउन्भूएतामेव दिसं पडिगए ।
तत् श्रेयः खलु मम गजसुकुमालस्य वैर निर्यातनं कर्तुम्, एवं संप्रेक्षते, संप्रेक्ष्य दिशाप्रतिलेखनं करोति, कृत्वा सरसां मृत्तिकां गृह्णाति, गृहीत्वा यत्रैव गजसुकुमालः अनगारः तत्रैव उपागच्छति, उपागत्य गजसुकुमालस्य अनगारस्य मस्तके मृत्तिकाया: पालिं बध्नाति, बद्ध्वा ज्वलन्त्याश्चितिकायाः फुल्लितकिंशुकसमानान् खदिराङ्गारान् कर्परेण गृह्णाति, गृहीत्वा गजसुकुमालस्य अनगारस्य मस्तके प्रक्षिपति, प्रक्षिप्य भीतः ततः क्षिप्रमेव अपक्रामति, अपक्रम्य यस्याः दिश: प्रादुर्भूतः तस्यामेव दिशि प्रतिगत: ।
अन्वयार्थ - तं सेयं खलु मम गयसुकुमालस्स = इसलिये निश्चय ही मुझे गजसुकुमाल से, वेरणिज्जायणं करित्तए = वैर का बदला लेना उचित है, एवं संपेहेइ = इस प्रकार (यह) विचार करता है, संपेहित्ता दिसापडिलेहणं करेइ, करित्ता = विचार कर दिशाओं का निरीक्षणकरता है, चारों तरफ देखकर, सरसं मट्टियं गिण्हइ गिण्हित्ता जेणेव गयसुकुमाले = गीली मिट्टी लेता है, मिट्टी लेकर जहाँ गजसुकुमाल, अणगारे तेणेव उवागच्छड़ = मुनि थे, वहाँ आता है, उवागच्छित्ता गयसुकुमालस्स अणगारस्स = वहाँ आकर गजसुकुमाल मुनि के, मत्थए मट्टियाए पालिं बंधइ = मस्तक पर मिट्टी की पाल बाँधता है, बंधित्ता जलंतीओ चिययाओ = पाल बाँधकर जलती हुई चिता से, फुल्लियकिंसुयसमाणे = फूले हुए केसूड़ा के फूलों के समान, खयरंगारे कहल्लेणं गिह्नइ = लाल खेर के अंगारों को खप्पर में लेता है, गिण्हित्ता गयसुकुमालस्स = लेकर गजसुकुमाल, अणगारस्स मत्थए पक्खिवइ
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