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तृतीय वर्ग - आठवाँ अध्ययन ]
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खलु भदन्त ! युष्माभिरभ्यनुज्ञातः सन् महाकालनामके श्मशाने एकरात्रिकीं महाप्रतिमाम् उपसंपद्य खलु विहर्तुम् ।
यथासुखं देवानुप्रिया ! ततः खलु सः गजसुकुमाल: अनगार: अर्हता अरिष्टनेमिना अभ्यनुज्ञातः सन् अर्हन्तम् अरिष्टनेमिनं वंदति नमस्यति, वन्दित्वा नमस्यित्वा अर्हतः अरिष्टनेमिनः अन्तिकात् सहस्राम्रवनात् उद्यानात् प्रतिनिष्क्रामति, प्रतिनिष्क्रम्य यत्रैव महाकालं श्मशानं तत्रैव उपागच्छति, उपागत्य स्थंडिलं प्रतिलेखयति, प्रतिलेख्य उच्चारप्रस्रवण - भूमिं प्रतिलेखयति, प्रतिलेख्य ईषत् प्राग्भारगतेन कायेन यावत् द्वौ अपि पादौ संहृत्य एकरात्रिकीं महाप्रतिमाम् उपसंपद्य विहरति ।
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वहाँ
अन्वयार्थ - तए णं से गयसुकुमाले = तदनन्तर वह गजसुकुमाल, अणगारे जं चेव दिवसं पव्वइए = मुनि जिस दिन दीक्षा ग्रहण की, तस्सेव दिवसस्स = उसी दिन, पुव्वावरण्हकालसमयंसि दिन के पिछले भाग में, जेणेव अरहा अरिट्ठणेमी = जहाँ अरिहंत अरिष्टनेमि थे, तेणेव उवागच्छइ = आये, उवागच्छित्ता = वहाँ आकर, अरहं अरिट्टणेमिं = भगवान नेमिनाथ को, तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं = तीन बार आदक्षिणा प्रदक्षिणा करते हैं, तथा, करेइ, करित्ता एवं वयासी = प्रदक्षिणा करके इस प्रकार बोले-, ‘इच्छामि णं भंते ! = "हे भगवन् ! मैं चाहता हूँ, तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे = आपसे आज्ञा दिया हुआ, महाकालंसि सुसाणंसि = महाकाल नामक श्मशान में, एगराइयं महापडिमं = एक रात्रि की महाप्रतिमा, उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए = धारणकर विचरण करूँ ।"
'अहासुहं देवाणुप्पिया!' = प्रभु बोले-“हे देवानुप्रिय ! जैसे सुख हो वैसे करो,” तणं गयसुकुमाले = तब वह गजसुकुमाल, अणगारे अरहया अरिट्टणेमिणा = मुनि भगवान नेमिनाथ से, अब्भणुण्णाए समाणे = आज्ञा प्राप्त कर, अरहं अरिट्टणणेमिं वंदइ नमस = भगवान नेमिनाथ को वन्दना नमस्कार करते हैं, वंदित्ता नमंसित्ता = वन्दना नमस्कार करके, अरहओ अरिट्ठणेमिस्स = भगवान नेमिनाथ के, अंतियाओ सहसंबवणाओ = पास से सहस्राम्रवन नामक, उज्जाणाओ पडिणिक्खमइ उद्यान से बाहर निकले। पडिणिक्खमित्ता जेणेव = उद्यान से निकलकर जहाँ, महाकाले सुसाणे महाकाल श्मशान था, तेणेव उवागच्छइ = वहाँ पर आते हैं। उवागच्छित्ता = महाकाल श्मशान में आकर, थंडिलं पडिलेहेइ = उन्होंने भूमि की प्रतिलेखना की, पडिलेहित्ता उच्चारपासवण - -भूमिं : प्रतिलेखन करके उच्चार पासवण भूमि (मलमूत्रत्यागस्थल), पडिलेहेइ पडिलेहित्ता = का प्रतिलेखन करते हैं, प्रतिलेखन करके, ईसिं पब्भारगएणं काएणं = थोड़ा देह को पूर्व की तरफ झुका, जाव दो वि पाए साहट्टु = कर (एक पुद्गल पर दृष्टि जमाये) दोनों पैरों को (चार अंगुल के अन्तर में) सिकोड कर,
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