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[ अंतगडदसासूत्र
देवनं देविं इट्ठाहिं = देवकी देवी को इष्ट वचनों से, जाव आसासेइ = यावत् आश्वस्त करता है, आसासित्ता जामेव दिसं= आश्वस्त करके जिस दिशा से, पाउब्भूए तामेव दिसं पडिगए = प्रकट हुए थे उसी दिशा में, वापस चले गये। तए णं सा देवई देवी = तदनन्तर वह देवकी देवी, अण्णया कयाइं तंसि तारिसगंसि जाव = अन्यदा किसी दिन योग्य सुख शय्या में सोती हुई, सीहं सुमिणे पासित्ता पडिबुद्धा : सिंह को स्वप्न में देखकर जाग गई, जाव हट्ठ तुट्ठ हियया = यावत् हृष्टतुष्ट हृदय होकर, तं गब्भं सुहं सुहेणं परिवहइ = सुखपूर्वक उस गर्भ को वहन करने लगी ।
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भावार्थ-इसके पश्चात् श्री कृष्ण - वासुदेव पौषध-शाला से निकले, वहाँ से निकलकर देवकी माता के पास आये और आकर अपनी माता का चरण - वंदन किया।
चरण-वन्दन करके वे माता से इस प्रकार बोले- "माताजी ! मेरे एक सहोदर छोटा भाई होगा । अब आप चिन्ता न करें । आपकी इच्छा पूरी होगी।”
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ऐसा कह करके उन्होंने देवकी माता को मधुर एवं इष्ट वचनों से आश्वस्त किया और आश्वस्त करके जिधर से आये उधर ही लौट गये ।
कालान्तर में उस देवकी माता ने, जब वह योग्य सुख - सेज पर सोई हुई थी, तब एक दिन सिंह का स्वप्न देखा ।
स्वप्न देखकर वह जागृत हुई। पति से स्वप्न का वृत्तान्त कहा। अपने मनोरथ की पूर्णता को निश्चित समझकर यावत् हर्षित एवं हृष्ट तुष्ट हृदय होती हुई वह सुखपूर्वक अपने उस गर्भ का पालन-पोषण करने लगी ।
सूत्र 15
मूल
तए णं सा देवई देवी नवण्हं मासाणं जासुमणा -रत्तबंधु - जीवयलक्खरस-सरसपारिजातकतरुणदिवायर - समप्पभं, सव्वनयणकंतं सुकुमालं जाव सुरूवं गयतालुयसमाणं दारयं पयाया । जम्मं णं जहा मेहकुमारे। जाव जम्हाणं अम्हं इमे दारए गयतालुसमाणे तं होउ णं अम्हं एयस्स दारयस्स नामधेज्जे गयसुकुमाले, तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो नामं करेइ गयसुकुमाले त्ति, सेसं जहा मेहे जाव अलं भोगसमत्थे जाए यावि होत्था । तत्थणं बारवईए नयरीए - सोमिले नामं माहणे परिवसइ, अड्डे रिउव्वेय जाव सुपरिनिट्ठिए यावि होत्था । तस्स सोमिलस्स माहणस्स सोमसिरी नामं माहणी होत्था ।