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तृतीय वर्ग - आठवाँ अध्ययन ]
43} अन्वयार्थ-तए णं तीसे सुलसाए = तदनन्तर उस सुलसा, गाहावइणीए भत्तिबहुमाण- = गाथापत्नी की उस भक्ति व, सुस्सूसाए = बहुमानपूर्वक शुश्रूषा (सेवा) से, हरिणेगमेसी देवे आराहिए यावि होत्था = हरिणैगमेषी देव प्रसन्न हो गया । तए णं से हरिणेगमेसी देवे = तब उस हरिणैगमेषी देव ने, सुलसाए गाहावइणीए अणुकंपणट्ठाए = सुलसा गाथापत्नी पर अनुकंपा हेतु, सुलसां गाहावइणीं तुमं च = सुलसा गाथापत्नी को और तुझको, णं दोण्णि वि समउउयाओ करेइ = दोनों को समकाल में ऋतुयुक्त किया । तएणं तुन्भे दो वि सममेव = तदनन्तर तुम दोनों ने ही समान काल में, गब्भे गिण्हह, सममेव = गर्भ धारण किया, समान काल में ही, गब्भे परिवहह = गर्भ की पालना की व, सममेव दारए पयायह = समान काल में ही बालकों को जन्म दिया था। तए णं सा सुलसा गाहावइणी विणिहायमावण्णे दारए पयाइइ = तब उस सुलसा गाथापत्नी ने मरे हुए बालकों को जन्म दिया । तए णं से हरिणेगमेसी देवे = तदनन्तर वह हरिणैगमेषी देव, सुलसाए अणुकंपणट्ठाए = सुलसा पर अनुकम्पा करने के लिये, विणिहायमावण्णाए दारए = उसके मृत बालकों को, करयलसंपुडेणं गिण्हइ = दोनों हाथों में ले लेता है, गिण्हित्ता तव अंतियं साहरइ = लेकर तेरे पास ले आता है। तं समयं च णं तुम पि नवण्हं = उस समय तुम भी नव, मासाणं सुकुमालदारए पसवसि = मास का काल पूर्ण होने पर सुकुमार बालकों को जन्म देती, जे वि य णं देवाणुप्पिए! = और जो भी हे देवानुप्रिये !, तव पुत्ता ते वि य तव = तुम्हारे पुत्र होते उनको भी वह तुम्हारे, अंतियाओ करयल-संपुडेणं गिण्हइ = पास से दोनों हाथों से ग्रहण कर लेता, गिण्हित्ता सुलसाए गाहावइणीए = लेकर सुलसा गाथापत्नी के, अंतिए साहरइ = पास ले जाता, तं तव चेव णं देवइ ! = अत: तेरे ही हैं हे देवकि !, एए पुत्ता, नो चेव णं = ये पुत्र । नहीं हैं उस, सुलसाए गाहावइणीए = सुलसा गाथापत्नी के।
__ भावार्थ-तत्पश्चात् उस सुलसा गाथापत्नी की उस भक्ति-बहुमान पूर्वक की गई शुश्रूषा से देव प्रसन्न हो गया। प्रसन्न होने के पश्चात् हरिणैगमेषी देव सुलसा गाथापत्नी पर अनुकम्पा करने हेतु सुलसा गाथापत्नी को तथा तुम्हें-दोनों को समकाल में ही ऋतुमती (रजस्वला) करता और तब तुम दोनों समकाल में ही गर्भ धारण करतीं. समकाल में ही गर्भ का वहन करतीं और समकाल में ही बालक को जन्म देतीं। प्रसवकाल में वह सुलसा गाथापत्नी मरे हुए बालक को जन्म देती।
___ तब वह हरिणैगमेषी देव सुलसा पर अनुकम्पा करने के लिये उसके मृत बालक को दोनों हाथों में लेता और लेकर तुम्हारे पास लाता । इधर उस समय तुम भी नव मास का काल पूर्ण होने पर सुकुमार बालक को जन्म देतीं । हे देवानुप्रिये ! जो तुम्हारे पुत्र होते उनको भी हरिणैगमेषी देव तुम्हारे पास से अपने दोनों हाथों में ग्रहण करता और उन्हें ग्रहण कर सुलसा गाथापत्नी के पास लाकर रख देता (पहुँचा देता)। अत: वास्तव में हे देवकी ! ये तुम्हारे ही पुत्र हैं, सुलसा गाथापत्नी के नहीं है।