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प्राक्कथन
जैनधर्म की वर्तमान में उपलब्ध सर्वश्रेष्ठ धरोहर है-“आगम।" वीतराग भगवन्तों की अर्थ रूप वाणी को गणधर भगवन्त सूत्रबद्ध करते हैं जिन्हें अंगसूत्र कहा जाता है। अंगसूत्रों के आधार पर विशिष्ट आचार्यों पूर्वधरों (10पूर्वी तक) द्वारा निर्दृढ़ सूत्रों को अंग-बाह्य सूत्र कहा जाता है। वर्तमान में स्थानकवासी परम्परा इन्हीं अंग व अंग-बाह्य सूत्रों में से 32 सूत्रों को आगम रूप में स्वीकार करती है। आगम ज्ञान का खजाना है, विश्वकोष है। जिनमें सरल, सरस व सारपूर्ण शब्दों में न केवल जीवन-निर्माण व जीवन-निर्वाण के सूत्र भरे हैं अपितु खगोल, भूगोल, इतिहास, गणित, ज्योतिष, चिकित्सा, विज्ञान आदि की महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ संकलित हैं। आगमों का स्वाध्याय ज्ञानवृद्धि व कर्मनिर्जरा का साधन है, अत: प्रत्येक साधक को यथा शक्ति आगमों का निरंतर स्वाध्याय करना चाहिए।
अंतगड़दसाङ्गसूत्र अंगसूत्र में 8वाँ सूत्र है। वर्तमान में उपलब्ध इस आगम में भगवान अरिष्टनेमि व भगवान महावीर के शासनवर्ती 90 महान् साधकों का वर्णन है जिन्होंने जीवन के अंतिम समय में केवलज्ञान प्राप्त कर मुक्ति का वरण कर लिया। साधक के जीवन का चरम लक्ष्य मुक्ति है, इसकी प्रभावशाली प्रेरणा प्राप्त करने के लक्ष्य से ही पूर्वाचार्यों ने इसी सूत्र को पर्वाधिराज पर्युषण के 8 दिनों में वाचना के लिए स्थान दिया होंगा। आज जैन समाज के हजारों श्रावक-श्राविका, साधु-साध्वी इसके स्वाध्याय से अपने जीवन को सफल, सार्थक व समुन्नत बना रहे हैं। अंतगड़सूत्र की विशेषताएँ :___ (1) इसके 8 वर्गों में कुल 90 महापुरुषों का वर्णन है जिनमें 51 महापुरुष (41 श्रमण 10 श्रमणियाँ) अरिहंत अरिष्टनेमि के शासनवर्ती एवं 39 (16 श्रमण व 13 श्रमणियाँ) श्रमण भगवान महावीर के शासनवर्ती साधक हैं। इनमें प्रथम वर्ग का गौतम नामक प्रथम अध्ययन, तीसरे वर्ग का गजसुकुमाल नामक 8वाँ अध्ययन, व अतिमुक्त नामक पन्द्रहवाँ अध्ययन और 8वें वर्ग के काली, सुकाली, महाकाली, कृष्णा, सुकृष्णा, महाकृष्णा, वीरकृष्णा, रामकृष्णा, पितृसेनकृष्णा व महासेनकृष्णा अध्ययनों में इन साधकों की तप-संयम साधना का विशद वर्णन है, शेष पचहत्तर अध्ययनों में संक्षिप्त वर्णन है।