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[अंतगडदसासूत्र सोलह उपवास करके पारणा किया जाता है । इस तप में दिन को उत्कटुक आसन से बैठकर सूर्य की आतापना ली जाती है और रात्रि में वस्त्र रहित वीरासन से बैठकर ध्यान किया जाता है।।8।।
गुणरत्न संवत्सर तप-तालिका महीना तप व तप की संख्या तप के दिन पारणे के दिन योग
छट्ठा
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पहला 15 उपवास दूसरा
10 बेला तीसरा
8 तेला चौथा 6 चोला पाँचवाँ 5 पचोला
4 छह सातवाँ
3 सात आठवाँ
3 अठाई नवमाँ
3 नव दसवाँ
3दस ग्यारहवाँ 3 ग्यारह बारहवाँ
2 बारह तेरहवाँ
2 तेरह चौदहवाँ 2 चौदह पन्द्रहवाँ 2 पन्द्रह सोलहवाँ 2 सोलह योग
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480 मूल- एवं खलु जम्बू! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं
पढमस्स वग्गस्स पढमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते।। सूत्र 9॥ संस्कृत छाया- एवं खलु जंबू! श्रमणेन यावत् संप्राप्तेन अष्टमस्य अंगस्य अन्तकृद्दशानां प्रथमस्य
वर्गस्य प्रथमस्य अध्ययनस्य अयमर्थ: प्रज्ञप्तः ।। सूत्र 9 ।। अन्वायार्थ-एवं खलु जम्बू ! = “इस प्रकार निश्चय से हे जम्बू !, समणेणं जाव संपत्तेणं = श्रमण यावत् मोक्ष को प्राप्त प्रभु ने, अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं = आठवें अंग अन्तकृद्दशा के, पढमस्स वग्गस्स पढमस्स अज्झयणस्स = प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन का, अयम? पण्णत्ते = यह भाव फरमाया है।
भावार्थ-आर्य सुधर्मा-“इस प्रकार हे जम्बू! श्रमण भगवान यावत् मोक्ष प्राप्त प्रभु ने आठवें अंगशास्त्र अन्तकृद्दशा के प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन का यह भाव कहा है।"
।। इइ पढममज्झयणं-प्रथम अध्ययन समाप्त ।।
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