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प्रथम वर्ग - प्रथम अध्ययन ]
15} भगवन् ! मैं चाहता हूँ, तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे = आपकी आज्ञा प्राप्त होने पर, मासियं भिक्खुपडिमं = मासिकी भिक्षु प्रतिमा, उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए = अंगीकार करके विचरण करूँ।"
एवं जहा खंदओ = इस प्रकार जैसे स्कंधक ने समाराधन किया, तहा बारस भिक्खुपडिमाओ फासेइ = वैसे ही बारह भिक्षु प्रतिमाओं का (गौतम ने भी) समाराधन किया। फासित्ता गुणरयणं वि तवोकम्म तहेव फासेइ = आराधन करके गुण रत्न नामक तप का भी वैसे ही आराधन किया।
निरवसेसं जहा खंदओ तहा चिंतइ, तहा आपुच्छइ = पूर्ण रूपेण स्कन्धक की तरह ही चिन्तन किया, भगवान से पूछा, तहा थेरेहिं सद्धिं = तथा स्थविर मुनियों के साथ, सेत्तुंजं दुरूहइ = वैसे ही शत्रुञ्जय पर्वत पर चढ़े। मासियाए संलेहणाए बारस वरिसाई = 1 मास की संलेखणा से 12 वर्ष की, परियाए जाव सिद्धे = दीक्षा पर्याय पूर्ण करके यावत् सिद्ध हुए ।।8।।
भावार्थ-इसके बाद वह गौतम अणगार अन्यदा किसी दिन जहाँ अरिहन्त भगवान अरिष्टनेमि थे, वहाँ आये। वहाँ आकर उन्होंने अरिहन्त अरिष्टनेमि (नेमिनाथ) को तीन बार आदक्षिणा-प्रदक्षिणा की। प्रदक्षिणा करके वन्दन-नमस्कार किया। तिक्खुत्तो का पाठ बोलते तिक्खुत्तो शब्द के उच्चारण के साथ ही दोनों हाथ मस्तक (ललाट) के बीच में रखने चाहिए। आयाहिणं शब्द के उच्चारण के साथ अपने दोनों हाथ अपने मस्तक के बीच में से अपने स्वयं के दाहिने (Right) कान की ओर ले जाते हुए गले के पास से होकर बायें (Left) कान की ओर घुमाते हुए पुन: ललाट के बीच में लाना चाहिए। इस प्रकार एक आवर्तन पूरा करना चाहिए। इसी प्रकार से पयाहिणं और करेमि शब्द बोलते हुए भी एक-एक आवर्तन पूरा करना, इस प्रकार तिक्खुत्तो का एक बार पाठ बोलने में तीन आवर्तन देने चाहिए। तीनों बार तिक्खुत्तो के पाठ से इसी प्रकार तीन-तीन आवर्तन देकर वंदना की। वन्दन-नमस्कार करके वे प्रभु से इस प्रकार बोले-“हे भगवन् ! मैं चाहता हूँ कि आपकी आज्ञा प्राप्त करके मैं मासिकी भिक्षुप्रतिमा को अंगीकार करके विचरूण करूँ।"
इस प्रकार जैसे स्कन्धक मुनि ने साधना की वैसे ही मुनि गौतमकुमार ने भी बारह भिक्षु प्रतिमाओं का आराधन करके गुणरत्न नामक तप का भी उसी प्रकार आराधन किया।
सम्पूर्ण रूप से मुनि स्कन्धक की तरह ही मुनि गौतमकुमार ने भी वैसा ही चिन्तन किया और उसी प्रकार भगवान से पूछा तथा स्थविर मुनियों के साथ वैसे ही जैसे, मुनि स्कन्धक ने किया वे भी शत्रुजय पर्वत पर चढ़े । पर्वत पर चढ़कर उन्होंने एक मास की संलेखणा की एवं इस संलेखणापूर्वक 12 वर्ष की अपनी दीक्षा पर्याय पूर्ण करके यावत् सिद्ध हुए।
गुणरयणं वि तवो कम्म-गुणरत्न नामक तप सोलह महीनों में सपन्न होता है। इसमें तप के 407 दिन और पारणा के 73 दिन होते हैं। पहले मास में एकान्तर उपावस किया जाता है। दूसरे मास में बेले-बेले पारणा और तीसरे मास में तेले-तेले पारणा किया जाता है। इसी प्रकार बढ़ाते हु सोलहवें महीने में सोलह
# भिक्षु प्रतिमा के लिए 20 वर्ष की दीक्षा, 29 वर्ष की आयु एवं 9 पूर्व की तीसरी वस्तु का ज्ञान आवश्यक बताया जाता है, जो उचित नहीं लगता
है। इसका विस्तृत वर्णन परिशिष्ट के प्रश्नोत्तर संख्या 12 में देखे।