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[अंतगडदसासूत्र अर्द्ध भरत यानी 3 खण्ड के, बारवईए नयरीए = द्वारिका नगरी के (तथा), आहेवच्चं जाव विहरइ = अधिपतित्व को धारण करते हुए यावत् (श्रीकृष्ण) विचरते थे।। 5 ।।
भावार्थ-“ऐसी उस द्वारिकानगरी के बाहर ईशान कोण में रैवतक नाम का एक पर्वत था, जो वर्णन करने योग्य था। उस रैवतक पर्वत पर नन्दनवन नामक एक उद्यान था, जो भी वर्णनीय था। उस उद्यान में सुरप्रिय नाम का एक यक्षायतन था, जो प्राचीन था । वह उद्यान चारों ओर एक वन खण्ड से घिरा हुआ था और उसमें एक श्रेष्ठ जाति का अशोक का वृक्ष था । उस द्वारिका नगरी में श्रीकृष्ण नाम के वासुदेव राज्य करते थे, जो हिमवान पर्वत की भाँति मर्यादा पुरुषोत्तम थे। उनके राज्य का वर्णन कौणिक के राज्य के वर्णन की भाँति समझना चाहिये।” (नगरियों एवं राज्यों के वर्णन को विस्तार पूर्वक समझने की जिज्ञासा वालों को
औपपातिकसूत्र का अवलोकन करना चाहिए।) “ऐसी द्वारिका नगरी में समुद्र विजयजी आदि दस दशार्ह अर्थात् पूज्य पुरुष निवास करते थे। बलदेव, प्रमुख पाँच महावीर और प्रद्युम्न प्रमुख साढ़े तीन करोड़ कुमार भी वहाँ रहते थे। वहीं शाम्ब, जिनमें प्रमुख गिने जाते थे, ऐसे साठ हजार दुर्दान्त वीर, महासेन आदि छप्पन हजार बलवर्ग सैनिक भी थे। वीरसेन आदि इक्कीस हजार वीर योद्धा, उग्रसेन प्रमुख सोलह हजार राजा एवं रुक्मिणी प्रमुख 16 हजार रानियाँ, अनंगसेना आदि हजारों गणिकाएँ तथा अन्य बहुत से ईश्वर पदधारी नागरिकों से लेकर अनेक सार्थवाह भी उस नगरी के निवासी थे।"
“इस प्रकार सब प्रकार के वैभव एवं शक्तिशाली नागरिकों से सम्पन्न उस द्वारिका नगरी के तथा समस्त अर्द्ध-भरत के अर्थात् इस जम्बू द्वीप के तीन खण्डों के अधिपतित्व को धारण करते हुए यावत् श्रीकृष्ण विचरण करते थे।।5।।" सूत्र 6
तत्थ णं बारवईए नयरीए अंधगवण्ही नामं राया परिवसइ महया हिमवन्त वण्णओ। तस्स णं अंधगवण्हिस्स रण्णो धारिणी नामं देवी होत्था, वण्णओ, तए णं सा धारिणी देवी अण्णया कयाइं तंसि तारिसगंसि सयणिज्जसि एवं जहा महाबले सुमिणदंसण-कहणा जम्मं बालत्तणं कलाओ य जोव्वणे-पाणिग्गहणं कंता पासाय भोगा य नवरं गोयमो नामेणं अट्ठण्हं रायवरकन्नाणं एगदिवसेणं पाणिं गिण्हावेंति, अट्ठठ्ठओ दाओ।। 6 ।।
मूल