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[अंतगडदसासूत्र
।। दिवसचरिम ।। दिवसचरिमं पच्चखामि, चउव्विहं पि आहार-असणं, पाणं, खाइम, साइमं । अन्नत्थऽणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहि-वत्तियागारेणं वोसिरामि।
। अभिग्रह ।। अभिग्गहं पच्चक्खामि, चउव्विहं पि आहार-असणं, पाणं, खाइम, साइमं । अन्नत्थऽणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं सव्वसमाहि-वत्तियागारेणं वोसिरामि ।
॥नीवी।। उग्गए सूरे विगइओ पच्चक्खामि, अन्नत्थऽणाभोगेणं, सहसागारेणं, लेवालेवेणं, गिहत्थसंसिट्टेणं, उक्खित्तविवेगेणं, पडुच्चमक्खिएणं, पारिट्ठावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहि-वत्तियागारेणं वोसिरामि ।
॥ दया के पच्चक्खाण ।। द्रव्य से-पाँच आश्रव सेवन का पच्चक्खाण, क्षेत्र से-लोक प्रमाण, काल से-सूर्योदय तक, भाव से-एक करण, एक योग (करण योग इच्छानुसार बोल सकते हैं।) उपयोग सहित, तस्स भंते ! पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि। सूचना-यदि संवर लेना तो काल से-स्थिरता प्रमाण (जितने समय का करना हो, उसे प्रकट करें) बोलें।
॥प्रत्याख्यान पारने का पाठ ।। ........पच्चक्खाणं कयं, तं पच्चक्खाणं सम्म मणेणं, वायाए, काएणं, न फासियं, न पालियं, न तिरियं, न किट्टियं, न सोहियं, न आराहियं आणाए अणुपालियं न भवइ, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ।
सूचना-रिक्त स्थान पर जो पच्चक्खाण पारना है, उसका नाम बोलें।
॥पौषध ग्रहण करने के पाठ ।। (1) प्रतिपूर्ण पौषध (अष्ट प्रहर पौषध)-प्रतिपूर्ण पौषध-व्रत पच्चक्खामि-सव्वं असणं पाणं खाइमं साइमं का पच्चक्खाण, अबंभ सेवन का पच्चक्खाण, अमुकमणिसुवर्ण का पच्चक्खाण, मालावण्णग-विलेवण का पच्चक्खाण, सत्थमूसलादिक-सावज्ज-जोग सेवन का पच्चक्खाण । जाव अहोरत्तं पज्जुवासामि दुविहं, तिविहेणं, न करेमि, न कारवेमि, मणसा, वयसा, कायसा तस्स भंते! पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ।
सूचना-यह पौषध कम से कम आठ प्रहर अर्थात् 24 घण्टे के लिए होता है।
(ब) ग्यारहवाँ पौषध-ग्यारहवाँ पौषध-व्रत पच्चक्खामि-सव्वं असणं, पाणं, खाइम, साइमं का पच्चक्खाण, अबंभ सेवन का पच्चक्खाण, अमुकमणि-सुवर्ण का पच्चक्खाण, माला-वण्णग-विलेवण का पच्चक्खाण, सत्थमूसलादिक सावज्ज-जोग सेवन का पच्चक्खाण-सूर्योदय तक, पज्जुवासामि दुविह, तिविहेणं, न करेमि, न कारवेमि, मणसा, वयसा, कायसा तस्स भंते! पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि।।
सूचना-यह पौषध कम से कम पाँच प्रहर का होता है । एक प्रहर दिन शेष रहते ग्रहण किया जाता है । जिन्होंने चौविहार त्याग रूप उपवास किया है, वे ही इसे ग्रहण कर सकते हैं।