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[अंतगडदसासूत्र
राजगृही नगरी के अन्दर, लोग रहे घबराय । मुनि वेष में आता देखी, और अचम्भो पाय ।। 3 ।। मुखपति मुख पे रजोहरण, कर जोरी घर-घर जाय । लेता देख्या भोजन पारणे, लोग क्रोध से आय ।। 4 ।। मारे ताड़े गाली सुनावे, भोजन मिलता नायँ । दिये परीषह जनता ने तब, समता भाव रहाय ।। 5 ।। मुनिवर सोचे अनर्थ कीनो, कुटुम्ब भार अपार । दिये न वैसे दु:ख उन्होंने, क्षमा हृदय में धार ।।6 ।। हुए न हुए पूर्ण पारणे, वर्ष यों अर्ध बिताय । वीत गुण करते धिक्क आत्मा, केवल उपन्यों आय ।।7 ।। धन्य-धन्य है वीर प्रभु को, अर्जुन दीनों तार । गुरु प्रसादे “सागर'' वन्दन, करता बारम्बार ।।8 ।।
श्री एवन्ता कुमार (तर्ज-सुज्ञानी जीवा भजले रे.......) एवन्ता मुनिवर, नाव तिराई बहता नीर में ।।टेर ।। बेले -बेले करे पारणो, गणधर पदवी पाया। महावीरजी री आज्ञा लेने, गौतम गोचरी आया हो.... ।।1।। खेल रया छ खेल कँवर जी, देख्याँ गौतम आताँ । घर-घर माँहीं फिरे हिंडता, पूछे इसड़ी बाताँ हो.... ।।2।। असणादिक लेवण के कारण, निरदोषण मैं हेरौँ । अँगुली पकड़ी कुँवर एवन्ता, लाया गौतम लेरा हो.... ।।3 ।। माता देखी कहे पुनवन्ता, भली जहाज घर लाया। हरख भाव हाथा ( लेइने, अन्न पानी बहराया हो.... ।।4।। कँवर कहे मुनि भार घणे रो, पात्रा मुझने आपो। पात्र तो मैं जद ही आपाँ, दीक्षा लो मुझ पास हो.... ।। 5 ।। लारे -लारे चालियो बालक, भेटीया मोटा भाग । भगवन्ता री वाणी सुणने, मन चढ़ियो वैराग हो.... ।।6।। घण आया माता कने सरे, अनुमति की अरदास । पुत्र वचन माता सुणी सरे, मन में आई हास हो.... ।।7।। तूं काँई समझे साधुपणा ने, बाल अवस्था थारी । ऐसा उत्तर दिया कुँवर जी, माता कहे बलिहारी हो....।।8।।