________________
257)
प्रश्नोत्तर ]
तो दूसरी रानी प्रसन्न हुई । उसने अवसर का फायदा उठाने के लिए पहली रानी से कहा- “अच्छा लाओ, मैं इस प्रकार के दर्द को मिटाने का उपाय जानती हूँ। अभी इसको ठीक कर देती हूँ।” भद्र स्वभाव की होने से पहली रानी ने अपना पुत्र दूसरी को सम्भला दिया। रानी ने उड़द के आटे की रोटी गर्म करके बच्चे के सिर पर बाँध दी। बालक की वेदना तीव्र हो गयी। वह इस बढ़ती हुई वेदना को छटपटाकर अल्पकाल में ही काल कर गया। सोमिल उस बालक का जीव था । गजसुकुमाल जीव ने दूसरी रानी के रूप में बालक के सिर पर द्वेष से गर्म रोटी बाँधी थी। इसलिए सोमिल द्वारा इनके सिर पर बदला लेने के लिए अंगारे रखे गये । यह है दोनों के वैर का रूप । कहा जाता है कि यह 99 लाख पूर्व भव की बात है। कर्म का स्वभाव है कि कितना ही काल क्यों न हो जाय, वह अपने देनदार को पकड़ ही लेता है। इसलिये कहा है कि 'कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि ।' बिना भोगे कृत कर्म से मुक्ति नहीं होती।
प्रश्न 39. सोमिल द्वारा गजसुकुमाल के सिर पर अंगारे रखने से मुनि की असमय मृत्यु हुई । इस पर प्रश्न होता है कि चरम शरीरी होने से मुनि निरूपक्रम आयु वाले थे, फिर उनको यह उपक्रम कैसे लगा ? क्या यह अकाल मरण नहीं है ?
उत्तर-गजसुकुमाल मुनि का अकाल-मरण व्यवहार दृष्टि से हो सकता है और व्यवहार दृष्टि से ही उपक्रम लगने का भी प्रश्न है । पर वास्तव में ऐसा नहीं है। अन्य कर्म की तरह आयु-कर्म का बन्ध भी स्थिति और प्रदेश आदि भेद से छः प्रकार का होता है। जब स्थिति की अपेक्षा प्रदेश संचय अधिक होता है, तब उन दलिकों को बराबर करने के लिए निमित्त की आवश्यकता होती है, उसे उपक्रम कहते हैं । उपक्रम का अर्थ समीप ले जाना अर्थात् जिस निमित्त से प्रदेश संचय स्थिति के निकट पहुँचे या बराबर हो, वह उपक्रम है।
निरूपक्रम आयु वालों को भी अग्नि, जल और शस्त्र प्रहार आदि के निमित्त मिल सकते हैं। किन्तु इनसे उनके जीवनकाल में कोई घटबढ़ नहीं होती। निरूपक्रम आयु वालों के लिए ये सब कारण मात्र असाता वृद्धि के ही हैं। वासुदेव श्रीकृष्ण का जराकुमार के बाण द्वारा प्राणान्त हुआ, फिर भी नियतकाल में होने से उसको आयु का टूटना या अकाल म नहीं कह सकते ।
दूसरा यह भी है कि जिसका जिस कारण से मरण निश्चित हो गया है, उसका उस निमित्त से मरण होना काल मरण ही कहा जायेगा, अकाल मरण नहीं। अतः इसको सैद्धान्तिक बाधा नहीं समझनी चाहिए।
प्रश्न 40. श्रीकृष्ण के समय में भिन्न जाति के लड़के-लड़कियों में भी क्या विवाह सम्बन्ध होता था? ब्राह्मण पुत्री सोमा को गजसुकुमाल के लिए कन्याओं के अन्तःपुर में रखने का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर- प्राचीन समय के उदाहरणों को देखने से ज्ञात होता है कि उस समय जातीय बन्धन इतने कठोर नहीं थे अथवा तो उसमें खास व्यक्ति विशेष या योग्यता को अपवाद माना जाता था। चक्रवर्ती के लिए विद्याधर कन्या से पाणिग्रहण का उल्लेख मिलता है। राजाओं को अन्य कुल की सुलक्षण कन्या से भी प्रीति हो जाती, तो उनके लिए वह अयोग्य नहीं माना जाता । सम्भव है श्रीकृष्ण द्वारा सोमा का चयन भी इसी आधार से किया गया हो । अधिकता से उस समय | क्षत्रिय पुत्रों का राज कन्याओं से और श्रेष्ठी पुत्रों का समान कुल वाली श्रेष्ठी कन्याओं से ही पाणिग्रहण का उल्लेख है। पाणिग्रहण के समय समान कुल शील वाली कन्याओं से ऐसा उल्लेख मिलता है, जो प्रायः सजातीय में ही सम्भव हो सकता है। कुलशील का महत्त्व होने से उस समय जातीय बन्धनों को सम्भव है इतना कड़क नहीं किया गया हो। परन्तु जब