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प्रश्नोत्तर]
251} यद्यपि गजसुकुमाल की उन्हें दिये गये परीषह से मुक्ति हो गई, किन्तु फिर भी प्रतिरोध एवं बदले की भावना के कारण उसे तो पाप कर्म का बन्ध हुआ ही।
प्रश्न 26. यदि सोमिल गजसुकुमाल की प्रतिहिंसा न करता तो गजसुकुमाल मोक्ष कैसे जाते?
उत्तर-कभी-कभी ऐसा हो जाता है कि जिसकी हिंसा की, वही, भावी जन्मों में कर्म उदीरणा का निमित्त बन जाता है, पर यह कोई शाश्वत नियम नहीं है कि, सर्वदा ऐसा ही हो।
जैसे किसी मुक्तिगामी जीव ने अन्तिम जन्म में अनन्त काय की हिंसा की हो तो वे सभी जीव तो वापिस उस जीव से बदला ले नहीं पाते, फिर भी वह मुक्तिगामी जीव अनन्तकाय की हिंसा आदि से बन्धे सभी पापकर्म क्षय करके मोक्ष में जाता ही है। अथवा जैसे अर्जुन माली ने कई जीवों की हिंसा की, वे सभी स्त्री पुरुष न जाने कहाँ पर थे, पर अर्जुन माली तो अपने कर्म का क्षय कर मोक्ष पधार गये।
प्रश्न 27. नेमिनाथ भगवान के छः मुनि तीन संघाड़े बनाकर अलग-अलग भिक्षा के लिए गये, ऐसा क्यों ? क्या पूर्व समय में सारे श्रमणों की एक ही गोचरी नहीं होती थी?
उत्तर-छ: मुनियों द्वारा तीन संघाड़े बनाकर भिक्षार्थ जाने के उल्लेख से प्रतीत होता है कि पूर्व समय में सामूहिक गोचरी की अपेक्षा इस प्रकार प्रत्येक संघाड़े की भिन्न-भिन्न गोचरी ही अधिक हुआ करती थी। उसमें समय भी कम लगता और आहार की गवेषणा भी आसानी से होती। संभव है इसीलिये भगवान नेमिनाथ के शासन में छ: मुनियों के अलगअलग संघाड़े किये गये हों। दूसरी इसके पीछे यह भी भावना रही हुई है कि हर मुनि ज्ञान-ध्यान की तरह भिक्षा को भी अपना प्रधान कर्त्तव्य समझे और उसमें संकोच अनुभव नहीं करे । इसलिए स्वयं गौतमस्वामी भी बेले के पारणे में खुद जाकर भिक्षा लाते, ऐसा शास्त्रीय लेख है। छोटा-बड़ा हर साधु भिक्षा लाना अपना कर्त्तव्य समझता था। आज की सामाजिकता में जनसम्पर्क और विद्यार्थी मुनियों का अभ्यास, बड़े साधुओं का संघ-संचालन एवं आगतजनों को ज्ञान-दान सरलता से हो, इसलिए सामूहिक भिक्षा होने लगी है। लाभ की तरह इसमें कुछ हानि भी है। शहर में अधिक साधुओं की गोचरी में 22 घण्टे सहज पूरे हो जाते हैं, ज्ञान-ध्यान के लिए समय निकालना कठिन हो जाता है। फिर पूर्व समय की तरह आज उन्मुक्त कुलों की भिक्षा भी नहीं होती । प्रायः समाज के माने हुए घरों में ही जाना होता है। अत: व्यवस्था के लिए सबकी एक गोचरी कर दी गई। यदि अलग-अलग संघाड़े की भिक्षा रखते, तो कौन किन घरों में जावे, यह व्यवस्था भारी हो जाती। फिर विभिन्न गण और सम्प्रदायों के हो जाने पर एक संघाड़े से दूसरे संघाड़े का भेद प्रतीत न हो और गण का बाहर में एक रूप दिखे । इसलिए भी सामूहिक गोचरी का चलन आवश्यक प्रतीत हो गया है।
प्रश्न 28. शास्त्र में उच्च, नीच और मध्यम कुल की भिक्षा का वर्णन आता है, इसका क्या अभिप्राय है?
उत्तर-यहाँ जाति की दृष्टि से ऊँच-नीच कुल का मतलब नहीं है। व्यवहार में जो भी घृणित या निषिद्ध कुल है, उनमें भिक्षा ग्रहण करने का तो पहले ही शास्त्र में निषेध है। आचारांग द्वितीय श्रुतस्कन्ध और निशीथ इसके साक्षी हैं। अत: यहाँ उच्च-नीच और मध्यम कुल भवन, प्रतिष्ठा और संपदा की दृष्टि से समझने चाहिए। प्रासादवासी उच्च, मँझली स्थिति वाले मध्यम और झोंपड़ी में रहने वाले तथा परिवार से छोटे कुल वाले नीच कुल के समझने चाहिए । शास्त्र में भिक्षा विधि बतलाते हुए कहा है-'नीय कुल मइक्कम्म, ऊसदं नाभिधारए।' छोटे कुल को लाँघकर साधु ऊँचे कुल-भवन