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सन्दर्भ सामग्री ]
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कोमल, क्षौमिक-रेशमी दुकूलपट से आच्छादित सुगन्धित उत्तम पुष्प, चूर्ण और अन्य शयनोपचार से युक्त शय्या पर सोती हुई प्रभावती रानी ने अर्ध निद्रित अवस्था में अर्द्ध-रात्रि के समय इस प्रकार का उदार, कल्याण, शिव, मंगलकारक और शोभायुक्त महास्वप्न देखा और जाग्रत हुई।
प्रभावती रानी ने स्वप्न में एक सिंह देखा, जो (वैताढ्य ) पर्वत के समान उच्च और श्वेत वर्ण वाला था । वह विशाल, रमणीय और दर्शनीय था। वह सिंह अपनी सुन्दर तथा उन्नत पूँछ को पृथ्वी पर फटकारता हुआ, लीला करता हुआ, उबासी लेता हुआ और आकाश से नीचे उतर कर अपने मुख में प्रवेश करता हुआ दिखाई दिया। यह स्वप्न देखकर प्रभावती रानी जागृत हुई। वह हर्षित और सन्तुष्ट हृदय से स्वप्न का स्मरण करने लगी। फिर रानी अपनी शय्या से उठी और राजहंसी के समान उत्तम गति से चलकर बलराजा के शयनगृह में आई और इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ आदि मधुर वाणी में बोलती हुई बलराजा को जगाने लगी। राजा के जागने पर एवं आज्ञा मिलने पर महारानी भद्रासन पर बैठी और इस प्रकार बोली
हे देवानुप्रिय ! आज तथा प्रकार की सुखशय्या में सोती हुई मैंने अपने मुख में प्रवेश करते हुए सिंह के स्वप्न को देखा है। हे देवानुप्रिय ! इस उदार महास्वप्न का क्या फल होगा ? रानी की यह बात सुनकर राजा बल ने अपने स्वाभाविक बुद्धि-विज्ञान से उस स्वप्न का फल निश्चय किया । तत्पश्चात् राजा इस प्रकार कहने लगा-हे देवी! तुमने उदार, कल्याणकारक, शोभायुक्त स्वप्न देखा है । हे देवानुप्रिये ! तुम्हें अर्थलाभ, भोगलाभ, पुत्रलाभ और राज्यलाभ होगा। हे देवानुप्रिये! नव मास और साढ़े सात दिन बीतने के बाद तुम कुल के दीपक, कुल को आनन्द देने वाले, सौम्य आकृति वाले, कान्त, प्रियदर्शन सुरूप एवं देवकुमार के समान कान्तिवाले पुत्र को जन्म दोगी। वह बालक बाल भाव से मुक्त होकर विज्ञ और परिणत होकर युवावस्था को प्राप्त करके शूरवीर, पराक्रमी, विस्तीर्ण और विपुल बल तथा वाहन वाला, राज्य का स्वामी होगा।
प्रभावती रानी राजा से महास्वप्न का फल श्रवण कर हर्षित हुई, यावत् शयनागार में आकर विचारने लगी- मेरा उत्तम, प्रधान मंगलरूप स्वप्न, दूसरे पाप स्वप्नों से विनष्ट न हो जाय अतः वह देव, गुरु, धर्म सम्बन्धी प्रशस्त और मंगल विचारणाओं से स्वप्न जागरण करती हुई बैठी रही ।
प्रात:काल के समय बलराजा शय्या से उठे, स्नान आदि कार्यों से निवृत्त होकर, वस्त्राभूषणों से अलंकृत होकर सुकोमल भद्रासन पर बैठे तथा कौटुम्बिक पुरुषों के द्वारा स्वप्न पाठकों को बुलवाकर स्वप्न का फल पूछा।
स्वप्न पाठकों ने भी सिंह के मुख में प्रवेश करने के महास्वप्न का फल वही बताया जो बलराजा ने रानी को बतलाया था। स्वप्न पाठकों से भी वह फल जो स्वयं ने सोचा था, सुनकर राजा बल अत्यन्त प्रसन्न हुए तथा महारानी प्रभावती को भी स्वप्न पाठकों से सुना फल कह सुनाया ।
प्रभावती रानी अत्यन्त हर्षित एवं सन्तुष्ट होती हुई । गर्भ के लिए हितकारी, पथ्यकारी, मित और पोषण करने वाले पदार्थ ग्रहण करने लगी । यथासमय जो जो दोहद उत्पन्न हुए, वे सभी सम्मान के साथ पूर्ण किये गये । रोग, मोह, भय, शोक और परित्रास रहित होकर गर्भ का सुखपूर्वक पालन करने लगी। इस प्रकार नवमास और साढ़े सात दिन पूर्ण होने पर प्रभावती देवी ने चन्द्र समान सौम्य आकृति वाले कान्त, प्रियदर्शन और सुन्दर रूप वाले पुत्र को जन्म दिया । पुत्र जन्म के प्रिय सम्वाद दासियों से सुनकर राजा बल हर्षित एवं सन्तुष्ट हुआ और अपने मुकुट को छोड़कर धारण हुए शेष सभी अलंकार उन दासियों को पारितोषिक स्वरूप दे दिये ।