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| अंतगडतसासूच
14. अहं सुदंसणे नामं समणोवासए अभिगयजीवाजीवे मैं सुदर्शन नाम का जीव अजीव का ज्ञाता
श्रमणोपासक हूँ।
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15. मणसा वि अप्पउस्समाणे सम्मं सहइ, सम्मं खमइ, सम्मं तितिक्खड़, सम्मं अहियासेइ - मन से भी द्वेष न करते हुए सम्यक् प्रकार से सहन करता है, क्षमा करता है, तितिक्षा रखते लाभ का हेतु मानते हुए समभाव से सहन करते हैं।
16. संजमेण तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरड़ - संयम - तप से आत्मा को भावित करते
करते हैं।
हुए विचरण
17. जं चैव जाणामि तं चैव न जाणामि, जं चेव न जाणामि तं चैव जाणामि में जिसे जानता हूँ उसे नहीं जानता हूँ, जिसे नहीं जानता हूँ उसे जानता हूँ।