________________
{ 204
[अंतगडदसासूत्र सूत्रानुसार सम्यग्रीति (विधि) से आराधना करके आर्या महासेन कृष्णा ने इसकी दूसरी परिपाटी में उपवास किया और विगयरहित पारणा किया। जैसे रत्नावली तप में चार परिपाटियाँ बताई गईं वैसे ही इसमें भी चार परिपाटियाँ होती हैं। पारणा भी उसी प्रकार समझना चाहिये।
इसकी पहली परिपाटी में पूरे सौ दिन लगे, जिसमें पच्चीस दिन पारणे के और पचहत्तर दिन तपस्या के हुए । क्रम से इतने ही दिन दूसरी, तीसरी एवं चौथी परिपाटी के हुए। इस तरह इन चारों परिपाटियों का सम्मिलित काल एक वर्ष, एक मास और दस दिन का हुआ।
पहली एवं दूसरी परिपाटी में पारणे में विगय का त्याग कर दिया। तीसरी परिपाटी में पारणे में विगय के लेप मात्र का भी त्याग कर दिया । चौथी परिपाटी में आयम्बिल किया।
इस प्रकार इस तप की सूत्रोक्त विधि से आर्या महासेन कृष्णा ने आराधना की और अन्त में संलेखनासंथारा करके सभी कर्मों का क्षय करके वे सिद्ध-बुद्ध और मुक्त हो गईं।
।। इइ छट्ठमज्झयणं-षष्ठम अध्ययन समाप्त ।।
सत्तममज्झयणं-सप्तम अध्ययन
सूत्र 1
मूल- एवं वीरकण्हा वि। नवरं महालयं सव्वओभई तवोकम्मं उवसं
पज्जित्ताणं विहरइ । तं जहा-चउत्थं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता छटुं करेइ, करित्ता सव्वकागुणियं पारेइ, परित्ता अट्ठमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता दसमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता दुवालसमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता चउद्दसमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता सोलसमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता पढमा
लया||1|| संस्कृत छाया- एवं वीरकृष्णा अपि । विशेष:-(एषा) महत् सर्वतोभद्रं तपःकर्म उपसंपद्य विहरति ।
तद् यथा:-चतुर्थं करोति, कृत्वा सर्वकामगुणितं पारयति, पारयित्वा षष्ठं करोति, कृत्वा, सर्वकामगुणितं पारयति, पारयित्वा अष्टमं करोति, कृत्वा सर्वकामगुणितं पारयति, पारयित्वा दशमं करोति, कृत्वा सर्वकामगुणितं पारयति, पारयित्वा द्वादशम् करोति, कृत्वा सर्वकामगुणितं पारयति, पारयित्वा चतुर्दशं करोति,