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[अंतगडदसासूत्र अन्य किसी दिन जहाँ पर, अज्जचंदणा अज्जा तेणेव = आर्या चन्दनबाला थी वहाँ, उवागया, उवागच्छित्ता एवं वयासी- = आई और आकर इस प्रकार बोली, इच्छामि णं अज्जाओ! = हे आर्ये !, तुब्भेहिं अब्भणुण्णाया समाणी = आपकी आज्ञा हो तो मैं, रयणावलिं तवोकम्मं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए = रत्नावली तप अंगीकार करके विचरण करना चाहती हैं। अहासुहं देवाणुप्पिया! = हे देवानुप्रिय ! जैसे सुख हो वैसे करो, मा पडिबंधं करेह = परन्तु धर्मकार्य में विलम्ब मत करो । तए णं सा काली अज्जा = तब वह काली आर्या, अज्ज चंदणाए अब्भणुण्णाया समाणी = आर्या चन्दनबाला की आज्ञा प्राप्त हो जाने पर, रयणावलिं तवोकम्मं = रत्नावली तप को, उवसंपज्जित्ताणं विहरइ = अंगीकार करके विचरने लगी जो इस प्रकार है।।3।।
भावार्थ-एक दिन वह काली आर्या आर्यचन्दना आर्या के समीप आयी और आकर हाथ जोड़कर विनयपूर्वक इस प्रकार बोली-“हे आर्ये ! आपकी आज्ञा प्राप्त हो तो मैं रत्नावली तप को अंगीकार करके विचरना चाहती हूँ।"
महासती आर्या चन्दना ने कहा- “हे देवानुप्रिये ! जैसा सुख हो, करो, धर्म साधना के कार्य में प्रमाद मत करो।"
तब काली आर्या, महासती चन्दना की आज्ञा पाकर रत्नावली तप को अंगीकार करके विचरने लगी, जो इस प्रकार हैसूत्र 4 मूल- तं जहा-चउत्थं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता छटुं
करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता अट्ठमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता अट्ठछट्ठाई करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता चउत्थं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता छटुं करेइ करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता अट्ठमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता दसमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारिता दुवालसमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता चोद्दसमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता सोलसमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता अट्ठारसमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता वीसइमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता बावीसइमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता