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षष्ठ वर्ग - पन्द्रहवाँ अध्ययन ] खलु अहं अम्मयाओ = “हे माता-पिता !, जंचेव जाणामि, तं चेव न = मैं जिसको जानता हूँ उसी को नहीं जानता हूँ।
__ जाणामि, जंचेव न जाणामि = जिसको नहीं जानता हूँ, तं चेव जाणामि।" = उसी को जानता हूँ।" तए णं तं अइमुत्तं कुमारं = तब उस अतिमुक्त कुमार से, अम्मापियरो एवं वयासी- = माता-पिता इस प्रकार बोले-, “कहणं तुमं पुत्ता ! जंचेव = “हे पुत्र ! यह कैसे है कि तुम जिसको, जाणासि तं चेव न जाणासि = जानते हो उसी को नहीं जानते हो, जंचेव न जाणासि तं चेव जाणासि?" = जिसे नहीं जानते हो उसको जानते हो?"||6।।
भावार्थ-इसके पश्चात् अतिमुक्त कुमार अपने माता-पिता के पास आकर बोले-“अम्ब! आपकी आज्ञा पाकर मैं दीक्षा लेना चाहता हूँ।'
इस पर माता-पिता अतिमुक्तकुमार से इस प्रकार बोले-“हे पुत्र! अभी तुम बालक हो, असंबुद्ध हो। अभी धर्म को तुम क्या जानो?"
अतिमुक्तकुमार बोला- हे माता-पिता! मैं जिसको जानता हूँ, उस को नहीं जानता । और जिसको नहीं जानता हूँ उसको जानता हूँ।" माता-पिता-“पुत्र ! तुम जिसको जानते हो उसको नहीं जानते और जिसको नहीं जानते उसको जानते हो, यह कैसे ?' सूत्र 7 मूल- तए णं से अइमुत्ते कुमारे अम्मा-पियरो एवं वयासी-"जाणामि अहं
अम्मयाओ! जहा जाएणं अवस्सं मरियव्वं, न जाणामि अहं अम्मयाओ! काहे वा कहिं वा कहं वा केवच्चिरेण वा? न जाणामि अहं अम्मयाओ! केहिं कम्माययणेहिं जीवा नेरइयतिरिक्खजोणियमणुस्सदेवेसु उववज्जंति, जाणामि णं अम्मयाओ! जहा सएहिं कम्माययणेहिं जीवा नेरइय जाव उववज्जंति। एवं खलु अहं अम्मयाओ! जं चेव जाणामि तं चेव न जाणामि, जं चेव न जाणामि तं चेव जाणामि। तं इच्छामि णं अम्मयाओ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए जाव पव्वइत्तए।" तए णं तं अइमुत्तं कुमारं अम्मापियरो जाहे नो संचाएंति बहूहिं