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[अंतगडदसासूत्र
मूल- तए णं से अज्जुणए अणगारे छट्ठक्खमणपारणयंसि पढमपोरसीए
सज्झायं करेइ, जहा गोयमसामी जाव अडइ। तए णं तं अज्जुणयं अणगारं रायगिहे नयरे उच्चणीय जाव अडमाणं बहवे इथिओ य पुरिसा य डहरा य महल्ला य जुवाणा य एवं वयासी-"इमेणं मे पिया मारिए, इमेणं मे माया मारिया, भाया मारिए, भगिणी मारिया, भज्जा मारिया, पुत्ते मारिए, धूया मारिया, सुण्हा मारिया इमेणं मे अण्णयरे सयण-संबंधि-परियणे मारिए।" त्तिकट्ट अप्पेगइया अक्कोसंति, अप्पेगइया हीलंति, निंदति, खिसंति, गरिहंति, तज्जेंति,
तालेति। संस्कृत छाया- ततः खलु स: अर्जुन: अनगार: षष्ठक्षपणपारणके प्रथमपौरुष्यां स्वाध्यायं करोति,
यथा गौतम स्वामी यावदटति । ततः खलु तं अर्जुनकं अनगारं राजगृहे नगरे उच्चनीचं यावत् अटन्तं बहवः स्त्रियश्च पुरुषाश्च डहराश्च महान्तश्च युवानश्च एवमवदन्-“अनेन खलु मे पिता मारितः, अनेन खलु मे माता मारिता, भ्राता मारितः, भगिनी मारिता, भार्या मारिता, पुत्र: मारित: दुहिता मारिता, स्नुषा मारिता, अनेन खलु मे अन्यतरः स्वजन-सम्बन्धि-परिजन: मारितः।” इति कृत्वा अप्येके आक्रोशन्ति अप्येके हीलन्ति, निन्दन्ति, खिंसन्ति, गर्हन्ते, तर्जयन्ति,
ताडयन्ति। अन्वयार्थ-तए णं से अज्जुणए अणगारे = इसके बाद वह अर्जुन मुनि, छट्ठक्खमणपारणयंसि पढम- = बेले की तपस्या के पारणे के दिन प्रथम, पोरसीए सज्झायं करेइ, = प्रहर में स्वाध्याय करते, जहा गोयमसामी जाव अडइ = गौतम स्वामी के समान यावत् भ्रमण करते, तए णं तं अज्जुणयं अणगारं = उस समय अर्जुन मुनि को, रायगिहे नयरे उच्चणीय जाव = राजगृह नगर में उच्चनीच कुलों में यावत्, अडमाणं बहवे इथिओ य = घूमते हुए को बहुत सी स्त्रियाँ, पुरिसा य डहरा य महल्ला य = पुरुष, छोटे बच्चे, बड़े बूढ़े, जुवाणा य एवं वयासी- = और जवान इस प्रकार कहने लगे-, "इमेणं मे पिया मारिए = “इसने मेरे पिता को मारा है, इमेणं मे माया मारिया = इसने मेरी माता को मारा है, भाया मारिए, भगिणी मारिया = भाई को मारा है, बहिन को मारा है, भज्जा मारिया, पुत्ते मारिए = पत्नी को मारा है, पुत्र को मारा है, धूया मारिया, सुण्हा मारिया = लड़की को मारा है, पुत्रवधू को मारा है, इमेणं मे अण्णयरे सयण- = इसने मेरे अमुक स्वजन, संबंधि-परियणे मारिए" = सम्बन्धी परिजन को मारा है, त्तिकट्ट