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[अंतगडदसासूत्र अन्वयार्थ-तए णं से अज्जुणए मालागारे = तदनन्तर वह अर्जुनमाली, मोग्गरपाणिणा जक्खेणं = मुद्गरपाणि यक्ष से, विप्पमुक्के समाणे धसत्ति = मुक्त होने पर ‘धस्' ऐसी, धरणितलंसि सव्वंगेहिं निवडिए = आवाज के साथ सर्वांग से भूमि पर गिर पड़ा। तए णं से सुदंसणे = तब सुदर्शन श्रावक, समणोवासए निरुवसग्गमि त्ति = ने अपने को निरुपसर्ग जानकर अपनी, कट्ट पडिमं पारेइ = प्रतिज्ञा पूर्ण की (ध्यान खुला किया)। तए णं से अज्जुणए मालागारे = इधर वह अर्जुन मालाकार, तओ मुहुत्तंतरेणं आसत्थे समाणे = मुहूर्त भर के पश्चात् स्वस्थ होकर, उठेइ, उठ्ठित्ता सुदंसणं = वहाँ से उठा, उठकर सुदर्शन, समणोवासयं एवं वयासी- =श्रावक से यों बोला-, "तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! के ? = "हे देवानुप्रिय ! आप कौन हो और, कहिं वा संपत्थिया ?" = कहाँ जा रहे हो ?' तए णं से सुदंसणे समणोवासए = तब सुदर्शन श्रावक ने, अज्जुणयं मालागारं एवं वयासी- = अर्जुनमाली को इस प्रकार कहा-, “एवं खलु देवाणुप्पिया! = "हे देवानुप्रिय!, अहं सुदंसणे नामं समणोवासए = मैं सुदर्शन नामक श्रमणोपासक, अभिगय-जीवाजीवे = जीवाजीवादि का जानने वाला, गुणसिलए चेइए समणं = गुणशिलक उद्यान में श्रमण, भगवं महावीरं वंदिउं = भगवान महावीर को वन्दना नमस्कार, संपत्थिए" = करने के लिए जा रहा हूँ।।13 ।।
भावार्थ-मुद्गरपाणि यक्ष से मुक्त होते ही वह अर्जुन मालाकार ‘धस्' इस प्रकार के शब्द के साथ भूमि पर गिर पड़ा।
तब सुदर्शन श्रमणोपासक ने अपने को उपसर्ग रहित हुआ जानकर अपनी सागारी त्याग प्रत्याख्यान रूपी प्रतिज्ञा को पाला और अपना ध्यान खोला।
___ इधर वह अर्जुनमाली मुहूर्त भर (कुछ समय) के पश्चात् आश्वस्त एवं स्वस्थ होकर उठा और सुदर्शन श्रमणोपासक को सामने देखकर इस प्रकार बोला-“हे देवानुप्रिय! आप कौन हो तथा कहाँ जा रहे हो?"
__यह सुनकर सुदर्शन श्रमणोपासक अर्जुन-माली से इस तरह बोला-“हे देवानुप्रिय ! मैं जीवादि नौ तत्त्वों का ज्ञाता सुदर्शन नाम का श्रमणोपासक हूँ और गुणशील उद्यान में श्रमण भगवान महावीर को वंदननमस्कार करने जा रहा हूँ।" सूत्र 14 मूल- तए णं से अज्जुणए मालागारे सुदंसणं समणोवासयं एवं वयासी
"तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! अहमवि तुमए सद्धिं समणं भगवं महावीरं वंदित्तए जाव पज्जुवासित्तए।" 'अहासुहं देवाणुप्पिया!' तए णं से सुदंसणे समणोवासए अज्जुणएणं मालागारेणं सद्धिं जेणेव