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[अंतगडदसासूत्र पलसहस्रनिष्पन्नम् अयोमयं मुद्गरं गृहीत्वा यस्याः दिश: प्रादुर्भूत: तामेव दिशं
प्रतिगतः ।।12।। अन्वयार्थ-सव्वं असणं, पाणं, खाइमं साइमं, चउव्विहं पि आहारं = मैं सर्व प्रकार के अशन, पान, खाद्य व स्वाद्य चारों ही आहारों को, पच्चक्खामि जावज्जीवाए = भी आजीवन छोड़ता हूँ। जइ णं एत्तो उवसग्गाओ = यदि इस उपसर्ग से, मुच्चिस्सामि तो मे कप्पइ पारेत्तए = छूटता हूँ तो मुझे पारना, आहारादि करना कल्पता है। अह णं एत्तो उवसग्गाओ न मुच्चिस्सामि = पर यदि इस उपसर्ग से मुक्त न होऊँ तो, तओ मे तहा पच्चक्खाए चेव = मुझे इस प्रकार का सम्पूर्ण त्याग है। त्तिकट्ट सागारं पडिमं पडिवज्जइ। = ऐसा विचार करके सागारी पडिमा (अनशन व्रत) धारण कर लिया। तए णं से मोग्गरपाणिजक्खे तं = तदनन्तर वह मुद्गरपाणियक्ष उस, पलसहस्सणिप्फण्णं अयोमयं मोग्गरं = हजार पल भारी लोहे के मुद्गर को, उल्लालेमाणे उल्लालेमाणे = घुमाता घुमाता हुआ, जेणेव सुदंसणे समणोवासए = जहाँ पर सुदर्शन श्रमणोपासक था, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता = वहाँ आया, (परन्तु) वहाँ आकर (भी) वह सुदर्शन श्रमणोपासक को, नो चेव णं संचाइए सुदंसणं समणोवासयं तेयसा समभिपडित्तए = किसी प्रकार अपने तेज से विचलित करने में समर्थ नहीं हुआ। तए णं से मोग्गरपाणी- = फिर वह मुद्गरपाणि, जक्खे सुदंसणं समणोवासयं = यक्ष सुदर्शन श्रमणोपासक के, सव्वओ समंताओ परिघोलेमाणे = चारों ओर घूमते हुए, परिघोलेमाणे जाहे नो चेव = घूमते हुए जब नहीं, णं संचाएइ सुदंसणं समणोवासयं = सुदर्शन श्रमणोपासक को, तेयसा समभिपडित्तए = अपने तेज से पराजित कर सका, ताहे सुदंसणस्स समणोवासयस्स = तब सुदर्शन श्रमणोपासक के, पुरओ सपक्खिं सपडिदिसिं ठिच्चा = सामने खड़ा रहकर उस, सुदंसणं समणोवासयं अणिमिसाए = सुदर्शन श्रमणोपासक को अनिमेष, दिट्ठीए सुचिरं निरिक्खड़ = दृष्टि से चिरकाल तक देखता रहा। निरिक्खित्ता अज्जुणयस्स मालागारस्स = देखकर अर्जुन मालाकार के, सरीरं विप्पजहाइ, विप्पज्जहित्ता = शरीर को छोड़ दिया, छोड़कर, तं पलसहस्सणिप्फण्णं = (शरीर से निकल कर) उस सहस्रपल भारवाले, अयोमयं मोग्गरं गहाय = लोहे के मुद्गर को लेकर, जामेव दिसं पाउन्भूए तामेव = जिस दिशा से आया था उसी, दिसं पडिगए = दिशा की ओर चला गया।।12।।
भावार्थ-सब प्रकार का अशन, पान, खादिम और स्वादिम इन चारों प्रकार के आहार का भी त्याग करता हूँ।
यदि मैं इस आसन्न मृत्यु उपसर्ग से बच गया तो इस त्याग का पारण करके-आहारादि ग्रहण करूँगा। पर यदि इस उपसर्ग से मुक्त न होऊँ, न ब तो मुझे इस प्रकार का सम्पूर्ण त्याग यावज्जीवन है।
ऐसा निश्चय करके उन सुदर्शन सेठ ने उपर्युक्त प्रकार से सागारी पडिमा-अनशन व्रत-धारण कर लिया।