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[अंतगडदसासूत्र उस पुष्पाराम यानी फुलवाड़ी के समीप ही मुद्गरपाणि नामक एक यक्ष का यक्षायतन था, जो उस अर्जुन माली के पुरखों बाप-दादों से चली आई कुल परम्परा से सम्बन्धित था । वह पूर्णभद्र' चैत्य के समान पुराना, दिव्य एवं सत्य प्रभाव वाला था।
उसमें 'मुद्गर पाणि' नामक यक्ष की एक प्रतिमा थी, जिसके हाथ में एक हजार पल-परिमाण (वर्तमान तोल के अनुसार लगभग 62।। सेर तदनुसार लगभग 57 किलो) भारवाला लोहे का मुद्गर था। सूत्र 2 मूल- तए णं से अज्जुणए मालागारे बालप्पभिई चेव मोग्गरपाणि जक्खस्स
भत्ते यावि होत्था। कल्लाकल्लिं पच्छिपिडगाइं गिण्हइ, गिण्हित्ता रायगिहाओ नयराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव पुप्फारामे तेणेव उवागच्छइ । उवागच्छित्ता पुप्फच्चयं करेइ, करित्ता अग्गाइं वराइं पुप्फाइं गहाय जेणेव मोग्गरपाणिस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स महरिहं पुप्फच्चयणं करेइ करित्ता जाणुपायपडिए पणामं करेइ, करित्ता तओ
पच्छा रायमगंसि वित्तिं कप्पेमाणे विहरइ। संस्कृत छाया- ततः खलु सः अर्जुनक: मालाकारः बालप्रभृत्येव मुद्गरपाणियक्षस्य
भक्तश्चाप्यभवत् प्रतिदिनं पच्छिपिटकानि गृह्णाति, गृहीत्वा राजगृहात् नगरात् प्रतिनिष्क्राम्यति, प्रतिनिष्क्रम्य यत्रैव पुष्पारामः तत्रैव उपागच्छति । उपागत्य पुष्पोच्चयं करोति, कृत्वा अग्राणि वराणि पुष्पाणि गृहीत्वा यत्रैव मुद्गरपाणे: यक्षायतनम् तत्रैव उपागच्छति, उपागत्य मुद्गरपाणे: यक्षस्य महार्ह पुष्पार्चनकं करोति, कृत्वा जानुपादपतितः प्रणामं करोति कृत्वा तत्पश्चात् राजमार्गे वृत्तिं
कल्पमान: विहरति। अन्वयार्था-तएणं से अज्जुणए मालागारे = वह अर्जुन मालाकार, बालप्पभिइंचेव मोग्गरपाणि जक्खस्स = बचपन से ही मुद्गरपाणि यक्ष का, भत्ते यावि होत्था = भक्त हो गया था । कल्लाकल्लिं पच्छिपिडगाई = वह प्रतिदिन बाँस की छबड़ी, गिण्हइ, गिण्हित्ता रायगिहाओ = उठाता तथा उठाकर राजगृह, नयराओ पडिणिक्खमइ = नगर से बाहर निकलता, पडिणिक्खमित्ता जेणेव पुप्फारामे = व निकलकर जहाँ फूलों का बगीचा है, तेणेव उवागच्छइ = वहाँ पर आता, उवागच्छित्ता पुप्फच्चयं करेड़ = आकर पुष्पों का चयन करता, करित्ता अग्गाइं वराइं पुप्फाइं गहाय = करके अग्रणी श्रेष्ठ फूलों को