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षष्ठ वर्ग - तृतीय अध्ययन ]
121 } अन्वायार्थ-तच्चस्स उक्खेवओ = तीसरे अध्ययन का उत्क्षेपक-हे भगवन् ! श्रमण भगवान महावीर ने छठे वर्ग के दूसरे अध्ययन का जो भाव फरमाया वह सुना, अब तीसरे अध्ययन का प्रभु ने क्या भाव प्रकट किया है ? एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं = इस प्रकार हे जम्बू ! उस काल उस, समएणं रायगिहे नयरे गुण सिलए = समय में राजगृह नगर में गुणशील, चेइए = उद्यान था। सेणिए राया = श्रेणिक राजा था उसकी, चेल्लणा देवी = चेलना रानी थी। तत्थ णं रायगिहे नयरे अज्जुणए नामं = वहाँ राजगृह नगर में अर्जुन नाम वाला, मालागारे परिवसइ = मालाकार रहता था। अड्डे जाव = वह धनसम्पन्न, अपरिभूए = तथा अपराजित था । तस्स णं अज्जुणयस्स बंधुमई नामं भारिया होत्था = उस अर्जुन मालाकार के बंधुमती नाम की भार्या थी, सुकुमाल पाणिपाया = जो कोमल हाथ पैर (शरीर) वाली थी। तस्स णं अज्जुणयस्स मालागारस्स = उस अर्जुन मालाकार का, रायगिहस्स नय राजगृह नगर के बाहर, एत्थ णं महं एगे पुप्फारामे होत्था = एक विशाल फलों का बगीचा था। कण्हे जाव निकुरंबभूए = वह उद्यान श्यामल यावत् हरा भरा था । दसद्धवण्ण-कुसुम-कुसुमिए पासाइए = वहाँ पाँच वर्ण के फूल खिले हुए थे। वह उद्यान मन को प्रसन्न करने वाला था। तस्स णं पुप्फारामस्स अदूरसामंते = उस फूलों के बगीचे के पास ही, तत्थ णं अज्जुणयस्स मालागारस्स = वहाँ उस अर्जुन मालाकार के, अज्जयपज्जयपिइपज्जयागए = पिता पितामह प्रपितामह से चला आया, अणेगकुलपुरिसपरंपरागए = अनेक, कुलपुरुषों की परम्परा से सेवित, मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स = मुद्गरपाणियक्ष का, जक्खाययणे होत्था = यक्षायतन था । पोराणे दिव्वे, सच्चे जहा पुण्णभद्दे = वह यक्षायतन प्राचीन दिव्य और सत्यप्रभाव वाला था जैसे पूर्णभद्र । तत्थ णं मोग्गरपाणिस्स पडिमा = वहाँ पर मुद्गरपाणि की प्रतिमा, एगं महं फलसहस्सणिप्फण्णं = एक हजार पल भार वाला, अयोमयं मोग्गरं गहाय चिट्ठइ = बड़ा लोहमय मुद्गर लिये हुए खड़ी थी।
भावार्थ-श्री जम्बू स्वामी-“हे भगवन् ! श्रमण भगवान महावीर ने छडे वर्ग के दूसरे अध्ययन का भाव बताया सो सुना । अब तीसरे अध्ययन का प्रभु ने क्या अर्थ कहा है ? कृपा कर वह भी बताइये।"
श्री सुधर्मा स्वामी- “हे जम्बू! उस काल उस समय में राजगृह नामका एक नगर था । वहाँ गुणशीलक नामक एक उद्यान था। उस नगर में राजा श्रेणिक राज्य करते थे उनकी रानी का नाम 'चेलना' था।
उस राजगृह नगर में अर्जुन' नाम का एक माली रहता था। उसकी पत्नी का नाम बन्धुमती' था, जो अत्यन्त सुन्दर एवं सुकुमार थी।
उस अर्जुनमाली का राजगृह नगर के बाहर एक बड़ा पुष्पाराम (फूलों का बगीचा) था। वह बगीचा नीले एवं सघन पत्तों से आच्छादित होने के कारण आकाश में चढी घनघोर घटाओं के समान श्याम कान्ति से युक्त प्रतीत होता था। उसमें पाँचों वर्गों के फूल खिले हुए थे। वह बगीचा इस भाँति हृदय को प्रसन्न एवं प्रफुल्लित करने वाला बड़ा दर्शनीय था।