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[अंतगडदसासूत्र
चउत्थो वग्गो-चतुर्थ वर्ग सूत्र 1 मूल- जइणं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं
तच्चस्स वग्गस्स अयमढे पण्णत्ते। चउत्थस्स णं भंते ! वग्गस्स
अंतगडदसाणं समजेणं जाव संपत्तेणं के अढे पण्णत्ते? संस्कृत छाया- यदि खलु भदन्त ! श्रमणेन यावत् संप्राप्तेन अष्टमस्य अंगस्य अंतकृद्दशानां
तृतीयस्य वर्गस्य अयमर्थः प्रज्ञप्तः । चतुर्थस्य खलु भदन्त ! वर्गस्य अन्तकृद्दशानां
श्रमणेन यावत् संप्राप्तेन कोऽर्थः प्रज्ञप्तः ? अन्वायार्थ-जइ णं भंते ! = यदि हे भगवन् !, समणेणं जाव संपत्तेणं = श्रमण यावत् मुक्ति प्राप्त प्रभु ने, अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं = आठवें अंग अंतकृद्दशासूत्र, तच्चस्स वग्गस्स अयमढे पण्णत्ते । = के तीसरे वर्ग का यह अर्थ फरमाया है। चउत्थस्स णं भंते ! वग्गस्स = हे पूज्य !, अंतगडदसाणं = अंतकदृशा सत्र के चतर्थ वर्गका. समणेणं जाव संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते? = श्रमण भगवान यावत् मुक्ति प्राप्त प्रभु ने क्या अर्थ (भाव) कहा है?
भावार्थ-श्री जम्बू स्वामी-“हे भगवन् ! श्रमण यावत् मुक्ति प्राप्त प्रभु ने आठवें अंग अंतकृद्दशा के तीसरे वर्ग का जो वर्णन किया वह आपके श्रीमुख से सुना । अब अन्तकृद्दशा के चौथे वर्ग के हे पूज्य ! श्रमण भगवान ने क्या भाव दर्शाये हैं यह भी मुझे बताने की कृपा करें।"
एवं खलु जम्बू ! समणेणं जाव संपत्तेणं चउत्थस्स वग्गस्स
अंतगडदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता तं जहासंस्कृत छाया- एवं खलु जम्बू ! श्रमणेन यावत् संप्राप्तेन चतुर्थस्य वर्गस्य अंतकृद्दशानां दश
अध्ययनानि प्रज्ञप्तानि तानि यथाअन्वायार्थ-एवं खलु जम्बू ! = इस प्रकार हे जम्बू!, समणेणं जाव संपत्तेणं = श्रमण यावत् मुक्ति प्राप्त प्रभु ने, चउत्थस्स वग्गस्स अंतगडदसाणं = अन्तकृद्दशासूत्र के चतुर्थ वर्ग के, दस अज्झयणा पण्णत्ता तं जहा = दस अध्ययन कहे हैं। जो इस प्रकार हैं।
मूल